ईश्वर | Ishwar

Ishwar by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इसी प्रकार शिवपुराणमें स्वयं महेश्वरका वचन है-- निधा मिच्षो हहं विष्यो बह्माविष्णुहराल्यया । सर्गरक्षालयगुणैः निषठोऽयं सदा हरे ॥ अहं भवानयं शैव रुद्रोऽयं यो भिप्याि। एकं स्यं न भेदोऽसिि मेदे च बन्धनं भवेत्‌ ॥ हे विष्णो | सृष्ट, पाटन तथा संहार इन तीन गुणोके कारण मै ही बरहा; विष्यु ओर रिव नामके तीन मेदसे युक्त हूँ | हे हरे ! वास्तवमें मेरा स्वरूप सदा मेद-हीन है। मै, आप, यह (ब्रह्मा) तथा रुद ओर अगे जो कोई भी होंगे इन सबका एक हीरूप है, उनमें कोई भेद नदीं है, भेद माननेसे वन्धन होता है । मागवतमें भी खयं भगवानूका व्चन है-- अहं तरता च सर्वश्च जगतः कारणं परम्‌ । आत्मेश्वर उपद्रष्टा स्वयंडगविज्ञेषणः |! अालमायां समाय सोऽहं गुणमयी द्विज । एवन्‌ रक्षन्‌ हर्‌ विशं दपर सज्ञां कियोचिताम्‌ ॥ हम, रहा ओर शिव संसारके परम कारण हैं, हम सबके आत्मा, ईथर, साक्षी; स्वयंप्रकाशा और निर्षिशेष हैं । है ब्राह्मण ! वह मैं (विष्णु ) अपनी न्रिगुणमथी मायामें प्रवेश करके संसारकी सृष्टि, रक्षा तथा प्रलय करता हुआ भिन्न-भिन्न का्योंके अनुसार नाम धारण कता हँ | { १५




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