भक्ति और वेदान्त | Bhakti Aur Vedant

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Bhakti Aur Vedant by रामस्वरूप गुप्त - Ramswaroop Gupta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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_सेरे पथ-प्रदरशक, - छः है। उनके विचार, उनकी भावनाएँ उन्हींकी होती हैं । पुरानी पुस्तकों में घनकी जीवनचर्या प्रत्येक छोटी से छोटी शात को भी ध्यान रखफर वर्णित की गई है और उन्होंने भी प्रत्येक नियम छो वज-हा्थो से पण्ड्‌ रखा है । भूते मरना उन्दे स्वी- छर है पर इतर जाति के पुरुप का वनाया भोजन कदापि ग्रहण ने करेगे । पर उनमें स्वौ गन चौर अपार दृदृता रहती है। कट्टर हिन्दुओं का जीवन प्रगाढद विश्वास और झानुपम घर्माचरण का जीवन है ¡ अपने प्रगाद्‌ विश्वास फे ही कारणतो वे कट्टर होते हैं । हम सब लोगों के लिए चाहे इनका पथ जिसका यै दस च्दृत से चनुसरण करते हैं, ठीक न हो ; पर उनके लिए हो है । हमारी धर्म-पुसकों में लिखा है कि मनुष्य को सीमा के थाहर भी दानी होना चाहिए । यदि एक जन दूसरे की प्राण-रक्षा के लिए खयम्‌ भूखा रर अपने प्राण गंबाता है; हो बह ठोक करता है। यद्दी नहीं, प्रसयुतत उसे ऐसा झाचरण करना भी चाहिए । ब्राह्मण से आशा की जाती है कि इस विचार को बह इस फठोर सीमा तक अदुसरण करे। जो भारतीय साहित्य से परिचित हैं,. उन्हें महाभारत की एक सुन्दर कथा याद आव्रेगी लिसमे एक समूचे परिवार ने भूते र्ते हए अपना अन्तिम परोसा हृ्ना भोजन एक भिखारी को देकर प्राण त्याग दिए ।- इसमें कोई श्रत्युक्ति नददीं ; क्योंफि ऐसी बाते अव भी होती है | मेरे शुरु के मावा-पिता का चरिन्न भी वहुत कुछ इसी प्रकार का था । वे वहुत ही निर्थन थे] फिर मी बहधा एक गरीष घादेमी




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