श्री श्रीचैतन्य-चरितावली (द्वितीय भाग) | Shree Shreechaitanya-Charitavali (Dwitiya Bhaag)
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
484
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्राकथन ५
सिद्धान्तको मायावाद् बताकर उसकी असच्छसरता सिद्ध करना
और दूसरे गौराद्वदेवको समी अतारोके आदि-कारण
जवतारी' के पदपर व्रिठाना । बस, इन दोनों बातोंको भौँति-
मोतिसे सिद्ध करनेके ही निमित्त प्रायः समी चेतन्यदेवके
चेलि-सम्बन्धी प्रन्य लिखे गये है | उन परम भावुक ठेकेनि
मायावादिर्योको उच्टी-सुख्टी सुनानेर्मे ओर ्रीचैतन्यदेवको
साक्षात् पणे . परन्रह्म नदीं माननेवार्छोको कोसनेम ॑दही
अपनी अधिक दाक्ति व्यय की है । मायात्रादियोंको नीचा
दिखाने और गौराज्नके “अवतारित्व” को सिद्ध करनेगें गौराज्नका
असली प्रेममय जीवन छिप-सा गया है । विपक्षि्योका खण्डन
करनेमं वे लेखकदृन्द महाप्रसुके (णाद पि सुनिन तरोरपि
सहिप्णुना” वाले उपदेशको प्रायः भूल गये हैं । उनका
यह कांम एक प्रकारसे ठीक भी है, क्योंकि उनका जीवनी
लिखनेका प्रधान उद्देरेय ही यह था, कि लोग सब कुछ छोड़-
सङ्कर श्रीगोरक्घको दी साक्षात् श्रीकृष्ण मानकर एकमात्र
उन्हीकी शरणमे आ जार्यै । श्रीगोराज्नकी शरणमें आये बिना
जीवोंकी निष्कृतिका दूसरा उपाय ही नहीं । उन्होंने तो अपने
इष्टिकोणसे लोगोंके परमकल्याणकी ही चेष्टा की और कुछ गौर-
भरक्तोमं गोराङ्गका 'अवताल्िपना? सिद्ध करके अपने परिश्रमको
सफर बना भी च्या।
हमारी इस बातको सुनकर कुछ गौडीय सम्प्रदायके महायुभाव
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