मनुष्य-जीवनका अमूल्य समय | Manushya-Jeevan Amulya Samay
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
566
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मजुष्य-जीवनका भसूदय समय ७
साधन-रदित विषयासक्तं पामर मूखोका तो पत्तन होना
कोन बड़ी बात है ?
जैसे मूर्ख रोगी खादके यञ हुआ कुमथ्य करके मर
जाता है, वैसे (ही कमी पुरुष स्रीका अनुचित सेवन
करके अपना नाश कर डालता है । विलासिताकी चुदधिसे
का सेवन करनेते कामोदीपन होता है और कामका
वेग वदुनेसे बुद्धिका नाडा हो जाता है; कामसे मोदित
हुआ नष्ुदधि प्प चाहे जैसा विपरीत आचरण कर
, वरैरता हैः जिससे उसका सर्वथा अधःपतन हो जाता है ।
स्रीके सेवनसे बर, वीर्य बुद्धि तेजः उत्साह, स्मृति
और सद्यु्णोंका नाश हो जाता है, एवं शरीरम अनेक
प्रकारके रोगोंकी चद्धि होकर मनुष्य सृत्युके समीप पहुँच
जाता है; तथा इस लोकके सुख; कीर्ति और धर्मको
खोकर नरक गिर पढ़ता है। यही आत्माका पतन है,
इसीष्यि साधुजन कञ्चन ओर कामिनीका भीतर और
वादरसे सर्वथां त्याग कर देते दै) वास्तवमे मीतरका
त्याग ही असली त्याग है क्योकि ममता, अभिमान भर
, आक्तिसे रहित हुमा गही मनुष्यः न्याययुक्तं कञ्चन
मौर कामिनीके साय सम्बन्ध रखनेपर मी त्यागी ही माना
गया है।
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