जातियों को सन्देश | Jatiyon Ko Sandesh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१७ कलकी वास्तविकतारं सम्भव है कि जिस समय यह बंद हो, उस समय किसीको पता भी न चले कि ऐसा क्यों और केसे हु । यदि एक राजकुमारकी मृत्यु इस मददायुद्धका आरम्भ करनेके लिये पर्याप्त थी, तो क्या श्राश्चय करि कोड न कोई घटना इसकी एक ऐसे दिन इति भो करा दे जिस दिन इसकी समापिकी तनिक भी 'ाशा न हो | यह भी सम्भावना दै कि यह युद्ध किसी प्रकार न थमे, जैसा कि कमसे कम साधारणतः सममा जाता है। और इसके पहले जो कुछ नाममात्रके लिए शान्ति थी, उसके स्थानमें भविष्यमें सब जगह एक ऐसी स्थायी नौर किसी न किसी 'संशमें एक प्रभाव-शालिनी युद्ध-प्रचुर स्थिति खड़ी हो जाय जैसी कि लड़नेवाली जातियोंने श्रभीसेकर दी है। और इस समय जो 'न्तरी््रीय भयंकर संग्राम या खिति प्रादुभूत हो गई है, उसको कौन नहीं जानता ! कुछ भी दो, इसमें सन्दद्द नहदों कि जैसा झन्त और संग्रामोंका हुआ करता है, वैसा झन्त इस संग्रामका नहीं दोगा। जो 'झाघुनिक व्यवस्था है, उसीका अन्त इस संग्रामका अन्त होगा । इसमें बाल चरावर भी श्चन्तर नहीं पड़ सकता । जव तक केवल इस स्ाथं- पूणे व्यबस्थाका ही नहीं, बल्कि इस वातकी संभावनाका भी छत न हो जायगा कि कहीं भविष्यमें इस व्यवस्थाके मुर्देमें फिर भी प्राण था जायें, तच तक यह हलचल अपने अन्तको नहीं प्रैव सकती । मदुष्यमें पागलपन जितना शीघ्रतर भाता है, उतना शीध्रतर हूः ऽसमेसे जाता नदीं है । वद छण भरमे पागल दो सकता है; ' उसके श्रच्डे नेमे बरसों लगते हैं । भाग्यने उन जातियोंमें, द फरनेके लिए लालायित हो रषी थी, पागलपनका भूत भर परोकि वह्‌ योरपकी जातियोका नाश करना चाहता था । जातियों अ उनके साथ चलना चाइती हैं, उनके सिर २




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