भक्त-कुसुम | Bhakt - Kusum

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Bhakt - Kusum by हनुमान प्रसाद पोद्दार - Hanuman Prasad Poddar

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He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भक्त जगन्नाथदास भागवतकार ` ११ कर जगनाथदास गद्रद हयो गये } कृतज्ञतासे उनका हृदय भर गया } भगवान्‌के करकमल्के स्पर्शको स्मरण करके वह अनेको कृतार्यं समञ्ञने रगे । उन्होने मन-ही-मन कटा--“भहा, जिनके चरणधूठिके स्पश्ंसे पत्यरकी अहल्याका उद्धार हयो गया, जिनके चरणस्पशंसे शेपनागका मस्तक विचित्र मणियोसे विभूषित हो गया, वडे-वड़े ऋपि-सुनि जिनके चरणोदकको आग्रहपूर्वक मस्तकपर्‌ धारणं करते है, उनके करकमलका स्पर्श मुझे प्राप्त हो गया ! मेरे सद्धाग्यकी समता आज कौन कर सकता है £ भगवानक्ता स्मरण, कीर्तन ओर प्रार्थना करते-करते रात वीत गयी । सिपाहि्येनि दरवाजा खोखा । जगनाथदास बाहर निकटे, , धरन्तु पुरुपके वदे छुन्दरी खीको देखकर सिपाही चकित हो गये । जगनाथदासने उन्हें आश्चर्यचकित देखकर उनसे कहा- , भाइयों ! मैं वही जगनाथदास हूँ जिसको कल रातको तुम लोगोंने कोठरीमें चन्द किया था, प्रसुकी खीखा वड़ी विचित्र है, उन्दीकी करुणासे मुझे यह खीत्व प्राप्त हुआ है । तुम मुझे अभी राजाके पास ठे चढो ।' सिपाही राजासे पूछकर जीरूपी जगनाथदासक्रो राजमहमें ले गये । राजा उनकी कमनीय कामिनीमूर्ति और रमणी-सुरुम अज्ञ-प्रत्यज्नॉको देखकर आश्चर्यम इन गया । वह विचचार करने खगा कि “क्या बात हैं ? यह वहीं जगनाथ है या छछ करके उसने किसी खीको मेज दिया है । यदि वास्तवमें वहीं है तो यह सारी सर्वशक्तिमान्‌ भगवान्‌ श्रीदरिकी महिंमा है । मैने




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