भक्त-कुसुम | Bhakt - Kusum
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
108
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भक्त जगन्नाथदास भागवतकार ` ११
कर जगनाथदास गद्रद हयो गये } कृतज्ञतासे उनका हृदय भर
गया } भगवान्के करकमल्के स्पर्शको स्मरण करके वह अनेको
कृतार्यं समञ्ञने रगे । उन्होने मन-ही-मन कटा--“भहा, जिनके
चरणधूठिके स्पश्ंसे पत्यरकी अहल्याका उद्धार हयो गया, जिनके
चरणस्पशंसे शेपनागका मस्तक विचित्र मणियोसे विभूषित हो
गया, वडे-वड़े ऋपि-सुनि जिनके चरणोदकको आग्रहपूर्वक
मस्तकपर् धारणं करते है, उनके करकमलका स्पर्श मुझे प्राप्त
हो गया ! मेरे सद्धाग्यकी समता आज कौन कर सकता है £
भगवानक्ता स्मरण, कीर्तन ओर प्रार्थना करते-करते रात
वीत गयी । सिपाहि्येनि दरवाजा खोखा । जगनाथदास बाहर निकटे,
, धरन्तु पुरुपके वदे छुन्दरी खीको देखकर सिपाही चकित हो
गये । जगनाथदासने उन्हें आश्चर्यचकित देखकर उनसे कहा- ,
भाइयों ! मैं वही जगनाथदास हूँ जिसको कल रातको तुम लोगोंने
कोठरीमें चन्द किया था, प्रसुकी खीखा वड़ी विचित्र है, उन्दीकी
करुणासे मुझे यह खीत्व प्राप्त हुआ है । तुम मुझे अभी राजाके
पास ठे चढो ।' सिपाही राजासे पूछकर जीरूपी जगनाथदासक्रो
राजमहमें ले गये । राजा उनकी कमनीय कामिनीमूर्ति और
रमणी-सुरुम अज्ञ-प्रत्यज्नॉको देखकर आश्चर्यम इन गया । वह
विचचार करने खगा कि “क्या बात हैं ? यह वहीं जगनाथ है या
छछ करके उसने किसी खीको मेज दिया है । यदि वास्तवमें वहीं
है तो यह सारी सर्वशक्तिमान् भगवान् श्रीदरिकी महिंमा है । मैने
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