महाभारत [आदिपर्व] | Mahabharat [Adiparva]

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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॥ अदिप ११ यज्ञ कराया जिस में बहुत सा अन्न और दक्तिणा दी गई॥ राजा युधिष्टर ने जरासंथ और ` शिशुपाल जैसे बढ़े बढ़े थघमरडी.राजाओं को श्री कृष्ण जी की नीति और अजुन और भीम के वल से नष्ट कर दिया था, इन के हां से और अन्य कई मानय कौये हुये राजाओं के हां से युपिष्ठर को अर्जुन[द्वारा सोना, चादि, मशि, गौ, घोड़े, हाथी, रथ और नाना भकार के बहु सुल्य वत्र, तम्ब, डरे, अच्छः २ सुन्दर भरगचरम पिले युधिष्र की इस बढती हुई मतिष्टा, मान ओर ेश्वयै को दुर्योधन देख कर इंपों से जल भुन गया ॥ यज्ञ सभा को देख कर उस की इषां झागेसे भी बढ़ गईं उस यन्न स्थान मेँ दुर्योधन को भूल से गिरते हुये देख कर भीमसेन को हसी आई इस हसी से दुर्योधन को चदु को हु और वह उस क्रोध डाइ से नाना पाकर के भोग भोगते हुये और नाना रन अपने कोश मे रखते हये दिन भति दिवं निवल और पीला पढ़ने लगा ॥ धरृतराष्ट्र ने श्रपने पुत्र का यह हाल देख कर उस को असन्न करने के लीये उस के कथनालुसार धोखे का जुग खेलने की सम्मति दी इस से श्री कृष्ण जी को बड़ा क्रोध हुआ परन्तु उन्हो ने इत पर कच्छ अधिक ध्यान न दीया । भीष्म पितामह, कृपाचार्य और द्रोखाचाय ने बहुत समाया परन्तु किसी ने कोई न मानी, और परस्पर. युद्ध में क्षत्रि कुल का नाश हो गया अन्त में पारडवों की' जय हुई शतराष्ट्र ने संजय से यह बुरा हाल घन कर ओर दुयरथोन कणं ओर शनी की




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