राम जीवनी | Ram Jivani

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Ram Jivani by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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राम-जौवनी र प्रथम खंड चिकसातीं । चुश्ाजी की प्रेम की गोद; ्ांतरिक पत्रित्रता और धार्मिक चित्त ने बालक तीर्थरामजी के हृदय पर कुछ ऐसा धार्मिक प्रभाव डाला कि शिशुपन में ही उन्हें देव- मंदिरों; कथाश्ों श्र रत आदि से प्रेम हो गया, शंख- ध्वनि चचपन ही में उनके हृदय पर जादू भरा प्रभाव डालने लगी । गॉसाइंजी के पिताजी गोसाई हीरानंदजी का कथन है कि जब राम तीन यर्प के हुए, उस समय मैं उसे संपोग से एक दिन अपने साथ लेकर कथा सुनने के लिये धर्मशाला गया; यर जत्र तक भँ कथा सुनता रहा, यह नन्दा ववा वड़े ध्यान व्मौर्‌ सत्ाई से कथावाचक्‌ पंडित की श्नोर्‌ तकता रहा । जव दूसरे दिन लगभग उस समय कथा का शंख वना; तीथंसम ने रोना झारंभ कर दिया | मैंने उसे चुप कराने के लिये कड मेल फे खिलोने श्रौर मिठाई देनी चाही, वितु यह वचा मिठाई मौर खिलौनों के लोभ में विलकुत नहीं आया, वरन्‌ खिलौने इत्यादि सव फेक दिए तौर लगातार रोता रहा । इतने में में कथा सुनने के लिये जाने लमा मौर ती्धराम को मां साथ ले जाने के लिये गोद में उठा लिया । ज्यों ही मैंने उसे उठाकर धर्मशाला की ओर मुख किया; तरह बिलकुल छुप हो गया । मुझे यह तहत ही श्रचंभा-सा प्रतीत हुआ और मैं परीक्षा के लिये फिर थम गया । बच्चे ने फिर रोना आरंभ कर दिया | जव




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