तुलसीसतसई | Tulasisatasai
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
115 MB
कुल पष्ठ :
524
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रथम सग । ११
रा ररूप अनप अलः, हरत सकल मक्त मल ।
तलसी ममहिय योगलरिः उपनत सुख अनुकूल १ ४
श्रीगुरुरुप जो श्रीराम हैं तिन सरिस आन पदाथ नहीं है
यह बात तससी वेर शाघ्ठादिते सुनि निजपनते विचारक कहत दं
काहेते जास कहे जिन श्रीगुरुकुपाते श्रीरामभक्कि की शुचि कहे पवित्र
रुचि होत है अरु विशद कहे उज्ज्वल निमेल प्रमाण कहें सांचो
विवेक होत भाव शरीगुरुकृ गते शद्ध िवेक हत तच स्पस्वरूप जान
तब श्रीरामभक्ति फो पवित्र रुचि हात | उनतात्स वणं [चरक
दोहा है १ हे अब नाम को निरूपण करेगे याते प्रथम दाङ वणे
सबकी उत्पन्न के यादि कारण कहत श्रीरामनाम के जो दा ऊ वणे
दतां प्रथम दीं राकार है ताको कहत क्षि रा रस कहें जलरूप
नूप कहे जाकी उपमा को दस्रा नर्हा है अल कहे समथवा
परिपूर्ण है भाव एेश्वये बीजरूप हे जो मलमूल पाप वा मोहान्ध-
कारादि तिन सवकं हरत हृदय को निमल करत पुनः गोसाइजी
कहत कि सोइ रा रूप जल मकारल्य महिं पृथ्वीका योग ल
कहे प्राप्न भये यथा भृमि मे जलल बरषे सवं पदाथ पंदा हांत तथा
श्रीराम ऐसा शब्द उच्चारण करते ही जीवके अनुकूल जो सुख हे
ब्रझानन्द प्रेमानन्दादि सुख उपनत ह यामं राकार जलबीजरूप
समथे सबको कारण हे
यथा-पुलहसहितायाम्
बीज यथा स्थितो रक्षः शखापल्लवसयुतः ।
तथैव स्वेवेदा हि रकारेषु व्यवस्थिताः १
सो राकार नकल बीजरूप मकार पृथ्वी मँ मिले सबकी
उत्पति भर । पर
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