हिंदी के जनपद संत | Hindi Ke Janpad Sant

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Hindi Ke Janpad Sant by जगजीवन राम - Jagjeevan Ram

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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लिषय प्रवेश १. सुमेरी-प्रक्कादी सन्त सुमेर श्रक्काद की प्राचीनतर संज्ञा है । ईराक में दज़ला श्रौर फ़रात नदियों का द्वाब जो कभी मेसोपोतामिया कहलाता था दो भागों में बँटा था । नदियों के मुहानों पर बसे नगर-राज्यों की सम्मिलित भौगोलिक-सांस्कृतिक संज्ञा युमेर थी । सुमेर के निवासी जिन्होंने संसार को व्णंमाला श्र लिपि दी गैरसामी थे जिन पर ईसा से प्रायः ३००० ब्ष पूर्व श्रथवा कुछ बाद सामियों ने श्रधिकार कर लिया । नई जाति श्रक्कादी अथवा बाबुली कहलाई बाबुल उसका प्रधान नगर था । जाति भिन्न होते हुए भी बाबुली सुमेरियों की ही संस्कृति के उत्तराधिकारी हुए। मेसोपोतामिया का उत्तरी द्वाब भ्रयुर अथवा श्रसुरिया कहताया जहाँ को जाति प्रधान देवता तथा राजधानी सबका नाम शभ्रसुर था । जिस प्रकार अक्कादी-बावुलियों ने सुमेरियों को जीतकर उन पर शझ्रपनी सामी सत्ता स्थापित की उसी प्रकार अ्रसुरों ने भी अ्रवकादी-बाबुलियों को जीत उन पर श्रपनी उनसी ही सामी सत्ता स्थापित की । सुमेरी- सभी जातियों के सन्त थे यद्यपि इन सन्तों की परिभाषा यहरी-£राई अथवा मुस्लिम-हिन्दुसों की परिभाषा से सवंधा एकाकार न थी । साधारणत सन्तों में चार बातें विशेष रही हैं--झाचरणा व पवित्रता त्याग तथा शझ्रात्म-बलिदान लोककल्याण की भावना श्रौर दिव्य तथा श्रलौकिक चमत्कारपूणं क्रिया । सुमेरी-श्रककादी जीवन में इनमें से मात्र अ्रंतिम ही लक्षित होता है । ई. पु. ४००० से प्रारम्भ ही कर प्रायः ६० ई. पृ. तक घटनापूर्ण इतिहास स्वाभाविक है कि श्रपने भ्रादि काल में सबधा दिखे । दिव्य पौरुष तथा पौराशिक क्रियाशीलता ही तब की साधुवृत्ति की परिचायक है । व्यक्ति वीरकार्यों द्वारा प्रगट होते हैं उन्हीं के परिवेदा में उनका व्यक्तित्व लिपटा रहता है । देवता श्रौर उनमें विशेष श्रन्तर नहीं हुभ्रा करता श्रौर वे कालान्तर में पश्चात्कालीन सन्तों की ही भाँति पुजे जाने भी लगते हैं । इसी से कहा गया है कि बाबुली सन्तपन का झथ है सानस की शक्ति का सफल उपयोग कामना की श्राहुत वाक्ति में परिणति । इस हृष्टि रे




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