राजकुमारी | RajKumari
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
32 MB
कुल पष्ठ :
187
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)परिच्छेद ] रज्क्प्रारी] = (शष) |
नद
मानिक्र कुछ और कहा चाहता था कि इतनेमें सुकुमारी षी
मां पानी लेकर आई, दोनों ने वानी पिया । फिर सुकुमारी की मां
पोली,--'' बेटा मानिक ! जब स्कूल से लौटा कर, तो जेसे पहिले
श्राता था, वैसेदी चला आया कर । यहां जलपान कर ओर सुक्
मारी के साथ-खेलकर तथ फिर अपने .घर जाया कर ।.बेटा ! तू
भर खुकुमारी,--दोनों मेरी आंखों के तारे हो, बोल आवेगा न !”
खकुमारी को मां की प्यार-मरो खातं सुनकर मानिक की *
मनरूषिणी नदौ का बांध हूर गया, आंखों ष्टी एह गासुओं की
धारा बह निकली और उसने रु घे हुए गले से कहा--'' मां ! मैं.
निरा कंगार हैं, और दस घर मसांगकर पेट भर छेता हूं । भला,
मेरा इतना बड़ा हॉसला कहां कि में बराबर बेघड़क यहां आया
करूं ! उस दिन मेरे आने से बाबूजी सकुमारी पर हुत बिगड़ ये)
मां, मेरे आने. से बुराई पेरा होती है, इसलिये मुझे झमा करो; अब
में न आउंगा। ” »
कहते क्रहते मानिक सुकुमारी की मां के पेरों पर. गिरकर
सुखुक-ससक कर रोने लगा दोनों मां-बेरी भी आंसू गिराने छगों
सुकुमारी की मां ने उसे उठाकर कफलेजे से उगाया, उसका भांसू
पॉछा और उसके सिर पर हाथ फेरती. हुई यों कहा,--' नहीं
बेटा ! तू उनकी बाती का खयाल मत कर! उनका स्वभाव दीः
ऐसा है तू जैसे पदिले आता था, चैसे ही अब भी बराबर आया
कर ! कौन ऐसा पेदा. हुमा है, जो तेरा आना चन्द करेगा, ! में
समभ लेंगी, तू कोई फिकर मतकर । ( बेटी से ) अरी खुकुमारी है.
ज्ञा, सानिक को ऊपपर,छतपर लेज्ञा, इसका जी बदले ।
: मां के कहते ही खुझुमारी मानिक का हाथ पकड़कर, उसे
छंतपर डे ची ।.बद.भी उस्र सोने कीः पुतली के संग कठपुतली
की माति चिनाकुछक्हेदुनेच्छा।
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