राजकुमारी | RajKumari

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
RajKumari by अज्ञात - Unknown

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
परिच्छेद ] रज्क्प्रारी] = (शष) | नद मानिक्र कुछ और कहा चाहता था कि इतनेमें सुकुमारी षी मां पानी लेकर आई, दोनों ने वानी पिया । फिर सुकुमारी की मां पोली,--'' बेटा मानिक ! जब स्कूल से लौटा कर, तो जेसे पहिले श्राता था, वैसेदी चला आया कर । यहां जलपान कर ओर सुक्‌ मारी के साथ-खेलकर तथ फिर अपने .घर जाया कर ।.बेटा ! तू भर खुकुमारी,--दोनों मेरी आंखों के तारे हो, बोल आवेगा न !” खकुमारी को मां की प्यार-मरो खातं सुनकर मानिक की * मनरूषिणी नदौ का बांध हूर गया, आंखों ष्टी एह गासुओं की धारा बह निकली और उसने रु घे हुए गले से कहा--'' मां ! मैं. निरा कंगार हैं, और दस घर मसांगकर पेट भर छेता हूं । भला, मेरा इतना बड़ा हॉसला कहां कि में बराबर बेघड़क यहां आया करूं ! उस दिन मेरे आने से बाबूजी सकुमारी पर हुत बिगड़ ये) मां, मेरे आने. से बुराई पेरा होती है, इसलिये मुझे झमा करो; अब में न आउंगा। ” » कहते क्रहते मानिक सुकुमारी की मां के पेरों पर. गिरकर सुखुक-ससक कर रोने लगा दोनों मां-बेरी भी आंसू गिराने छगों सुकुमारी की मां ने उसे उठाकर कफलेजे से उगाया, उसका भांसू पॉछा और उसके सिर पर हाथ फेरती. हुई यों कहा,--' नहीं बेटा ! तू उनकी बाती का खयाल मत कर! उनका स्वभाव दीः ऐसा है तू जैसे पदिले आता था, चैसे ही अब भी बराबर आया कर ! कौन ऐसा पेदा. हुमा है, जो तेरा आना चन्द करेगा, ! में समभ लेंगी, तू कोई फिकर मतकर । ( बेटी से ) अरी खुकुमारी है. ज्ञा, सानिक को ऊपपर,छतपर लेज्ञा, इसका जी बदले । : मां के कहते ही खुझुमारी मानिक का हाथ पकड़कर, उसे छंतपर डे ची ।.बद.भी उस्र सोने कीः पुतली के संग कठपुतली की माति चिनाकुछक्हेदुनेच्छा।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now