आचार्य के सदुपदेश | Acharya Ke Suupdesh
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
455 KB
कुल पष्ठ :
30
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(११)
-सत्रपे वड़ा अहंकार यह है कि अपने आपको अहंकारी न
समझना और यह कहना कि अमुक व्यक्ति तो अहंकारी है और
हम अहंकार नदीं है |
-किसीकी निन्दा नहीं करनी चाहिये, आत्मस्तुति नहीं करनी
चाहिये, और अहंकार भी नहीं करना चाहिये । यह सब तो ठीक
है; पर इसके सायहो हम यह काम नहीं कर रह हैं, यह न समझना
भी बहुत जरूरी है ।
अमुक व्यक्ति परनिन्दा कर रहय है, यह कहना या समझना
भी परनिन्दा ही है ।
--वचन कैसा होना चाहिये ! जो दूसरोंके लिये दुखदायी न
हो, प्रदयंसात्मक हो, सत्य हो तथा दूसरोंका कल्याण करनेवाला हो ।
-पहले अपनी खरात्रियौ दूर क्रो, फिर दूसरोंके लिये
कुछ करनेका अधिकार प्राप्त होगा |
--अपनेसे जो कुछ सेवा बन पडे, करते जाभो ¦ दूसरोसे
यह् कहनेकी जरूरत नहीं कि तुम कुछ नहीं कर रहे हो ओर
हम सव कुछ कार रहे हैं ।
- बड़े आदमी अगर कोई बड़ा काम करते हैं तो प्रायः
. छोटे आदमी फौरन कह दिया करते हैं. कि अमुक सजन बहुत
बढ़े हैं, इसलिये उनसे ऐसा बड़ा काम बन पड़ा है, लेकिन इम
तो बहुत छोठे हैं, हमसे नहीं बन सकता; पर जब बड़े कोई
छोटा काम कर बैठते हैं तो छोटे फौरन हो उनका अनुसरण
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