मनोजगत की सैर | Manojagat Ki Ser

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नल ज आधुनिर विज्ञान की सूभिफा * विकासबाद ५ तो, मन का जो शान मिला और मिलता जा रह है, उसका भी व्यावदरिक उपयोग समव हुआ । मानसिक रोगियों की चिकित्सा होने छगी, वालदिमण के तसकों में क्रातिकारी परिवर्तन हुआ ! करोडो कछोगो के मन को प्रभावित करने के उपाय हाथ लगे और उनका दुरुपयोग मी होने लगा, जैसे विज्ञान के और गोधी का होता रहा हैं । व्यापारी अपने नेफे क लिए, राजनीति, तानाशाह अपनी महत्वा- कापार्ओं के निमित्त उसका उपयोग करने रगे | लेकिन दूसरी तरफ इसके सहारे मनुष्य अपने को भी अधिक समझने में समर्थ हुआ । समझना यानी काबू पाना और बदलने की लमता पाना भी होता है । मनुष्य की बदद सामर्थ्य आज मनोविज्ञान की अथ-गति के साथ बढ री है । यह बहुतर दी आगा का विपय है | पदले विश्व-युद्ध के बाद' बहुत लोगा का विश्वास था कि अब भविष्य में इस प्रकार के युद्ध नहीं होंगे । केकि दृसदे चिच्च युद्ध ने इख आचा को गदर धक पहुँचाया । खासकर त्तरह-तरइ की तानागादियों के प्रादुर्भाध के कारण वैज्ञानिकों के दिल्‍् में यदद सवाल अधिक बलवान बनने ल्ग कि आखिर मनुष्य का स्वभाव बया है | क्या सधे ओर कररता उसका अपरिव्तनीय स्वाय ह क्या प्रेम, दया, मेंत्री आदि गौण है * अगर ऐसा ही है, तो मानव-समाज के भविष्य के किए कौन- सी आधा अब बची रह्टी १ आणविक अख ने इस सवाल को अधिकं वीत्र कर दिया! प्रि चीस- फ्चीस चपा में मानव-स्वभाव को छेकर, जीवन में प्रेम तथा द्वेप के स्थान को लेकर, मनु के सामाजिक गुण-दोपी को लेकर जितनी सोज हुई है, उतनी इससे पहले कमी नहीं हुईं थी । इसमें से काफी आया की किरण चमकती है, कुछ दिशा सूझती है । जो रोग अह्िसिक समाज परिवर्तन के. कस से ले है, उनके. सिए, यहं अपरि है कि वे मनोविज्ञान तथा समाज-विज्ञान की प्रगति के साथ सप रखें, उन विजानो की मदद अपने काम मे ढेँ तथा उनके बिकास में भी मदद दिगा में एक प्राथमिक कदम के तौर पर है, जिससे इस हो और अधिक जानने की आकाश का निर्साण हये । विज्ञान के वारे में एक बात ध्यान में रखनी चाहिए. कि उसके किसी चिभाग का विकास अक्सर छोटी ब्राता से शुरू होता दे । पदा-विजञान की पढाई यहीं से इुलू होती है कि “बेड से फल पकने पर नीचे गिरता है और सेक्ड-प्रति सेकड रः दसाय से उसके वेग स ब्रद्धि दती 2) “पानी ठडा होने पर वफ बनता {4 पर शः 1” जो ८ द्वा दै, सवर जानते दे, उसीका शास्त्रीय र पर या से शुरू फर, फिर ष परमाणु की तह में गोता ओर मद्र के छोर ऋआ चछर ल्गाता द | करें । यह पुस्तक इस विपय में दिलचस्पी वेदा ४




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