मणि रत्नमाला प्रारंभ | Mani Ratanmala Prarambh

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Mani Ratanmala Prarambh by मणिलालजी महाराज - Manilalji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नित्य नित्य नवला नेदृथ्री, नमन करूं गुरुराय ! मेहेर करो मुज घपरे, कारज सब ही धाय. अरिहंत ज्ञान अंत छे, जाकों न लहिये पार, किंचित्‌ बुद्धि साधने, करं हुं तास विस्तार. सूत्र-प्रंथ बहु वांचतां, विध विष दरंका धाय; समाधान तेनु करं, ज्ञानो तणा पसाय. को$ सूत्र कोई अमे, को प्रकरणएमें जोय; को सज्ञनसै धारिय, प्रश्नोत्तर अति सोय. स्थिर विन्ते विवेकथी, वाचे तों फढ होय; € < (^ _*+ भथ अ, *३ नधौ पूणता अही कदी, दोष न देशों कोय, ~~न र १4. --- ॥ ॥६॥ .॥५॥ ॥९॥ ॥एा ष >>> सर. सै ४ ध १८८ ट है, 7 (र ५१० ५.१.० ><><2><>; > ><>८>< >




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