आकाश भारती [नेशनल ब्राडकास्ट ट्रस्ट] [खंड 1 ] | Aakash Bharti [National Broadcast Trust] [Khand 1]
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
145
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्रध्याप 3
स्वायत्तता के सातं रूप
3.1 “चिम्वर्स यवेरिपेय सेचरी' रब्दकोप स् स्वायत्तता क
अर्थ है “स्वशासन की शक्ति या अधिकार” । जमेंनी के दार्शनिक
इम्मेन्यएल कांत ने स्वायत्तता की कल्पना मानवीय इच्छा
के ऐसे सिद्धान्त के रुप में की, जिसमें आत्मनिर्देशन स्वयं
में ही निहित हो । यहू वात अवश्य ही विचिद्र लग सकती
है कि स्वायत्तता कां अर्यं जानने के लिए वर्तमानं णब्दका्पं
या अठारहवी शताब्दी के दार्शनिक का सहारा लिया जाए
क्योंकि इस शब्द का रोज-मर्य कौ वोलचार्ल म प्रयाग
से ऐसा लगता है कि इसका अर्थ आमतौर पर सव समझते
ही होंगे । वास्तविकता यह है कि इस शब्द के ठीक तात्पय
से कोई भो पूरी सरह परिचित नहीं है । पिछले कुछ महीनों
ने विभिन्न क्षे के व्यक्तियो की सवाही के दौरान यह
वात सामने आई कि स्वायत्तता के वारे मे उनके विचार
एक दूसरे से बहुत भिन्न है रौर कु एसे अथे-भेद दै जिनसे
स्वायत्तता कै ग्राद्ं की पवित्रता पर ही आंच प्रा्ती है ।
3.2 देश में विभिन्न क्षेत्रों--कोयले से लेकर डवलरोटी,
इस्पात उत्पादन से लेकर होटल प्रबंध आर मशीनी झौजारों
के निर्माण से लेकर जहाजरानी संचालन तक--की स्वायत्त-
शासी कम्पनियों के कामकाज की मामूली जानकारी रखने
वाला व्यक्ति भी यह समझ जाएगा कि भारतीय प्रशासनिक
और प्रवन्ध व्यवस्था के भ्रन्तर्गत भी स्वायत्तशासी संगठनों
ग्रौर सरकार के बीच कई तरह के संवंध वन गए है ।
3.3 हममे से वहुतों को बचपन में देखे गए उस
कार्नीवाल कौ याद भ्रा सकती है, जिसमें हमने अनेक 'हंसते
हुए शी्ों' में अपने चेहरे देखे हों । लेकिन वे दर्पण चास्तव
में कोई मजाक की चीज नहीं थे । उन शीशों में हमें अ्रपने
ही अ्रलग-ग्रलगं आकार श्रौर शक्ले दिखाई देती थीं: कभी
छोटी, मोटी भ्रौर बढ़े हुए पेट बाली शक्ल तो कभी लम्बा,
पतला और भूखा चेहरा और फिर कभी विशालकाय तिकोस
मुहे भ्नौर हाथी जसी मोटी टांगें । इन सब श्रपरुपों को देखकर
यह समझ पाना कठिन होता था कि असलियत भ्राखिर क्या है ?
रूप नही, तत्व
3.4 हम यहां स्वायत्तता के सात रूपों का उल्लेख
करेंग :
(कः) स्त्रायत्तता का संवेध केवल रूप या संरचना से
न होकर तत्व से है । किसी संगठन का चाहरी ढांचा या
रुप कुछ भी क्यो न वनाया जाए, उसका वास्तविक स्वरूप
और दुसरों से उसके संवंध उन बातों पर निभंर होंगे , जो
कानून के दायरे से बाहर है प्नौर जीवन की यथाथ परि
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स्थितियों को प्रतिविस्वित करने वाले होंगे । भारत सरकार
ने ऐसे स्वायतशासी संस्थानों की, जिन पर सरकारी विभागों
का नियंत्रण नहीं है, स्थापना करने में श्रलग-श्रलग ढाची
अपनाया है । ये संस्थान व्यवसायिक प्रकार के विभागीय
संस्थान है, कम्पनी कानून के श्रन्तर्गत पंजीकृत कंम्पानया
है, संसद् के ग्रघिनियमों के भ्रन्तर्गत स्थापित निगम अर आय गि
है तथा सोमायटी कानून के अन्तगत पंजीकृत सोक्तायरियां
भी है । इन .धणियों में सार्वजनिक क्षेत्र के 120 संस्थान
है । रेल, डाक-तार तथा झायुध कारखाने सरकारी संचालन
वलि व्यावसायिक संस्थान है, जिनके कर्मचारी सरकारी
कममेंचारियों की श्रेणी में आति है । दूसरी ओर, राज्य व्यापार
निगम, हिन्दुस्तान मशीन टूल्स शौर इंडियन टेलीफोन
इंडस्ट्रीज कम्पती कानून कै अन्तर्गत पंजीकृत है । तेल तथा
प्राकृतिक गैस झ्रायोग, जीवन वीमा निगम और विमान
कस्पनियो को संसद के विशेष कानूनों के भ्रन्तगंत्त बनाया
गया है । यदि उन विभागीय संस्थानों को छोड़ दिया जाए,
जो सरकार का ही आवश्यक अंग हैं, तो कम्पनी कानून के
अन्तर्यत पंजीकृत कम्पनियों श्र संसदीय अधिनियमों के
भ्रस्तगंत सठित निगमों और आयोंगों में व्यावहारिक तौर
पर वहुत कम श्रन्तर है । इनकी स्वायत्तता कौ मान्ता इनकी
संरचना से नहीं, बल्कि अन्य भिन्न पहलुओं से प्राप्त होती
है । इन दोनों प्रकार की कम्पनियों पर संसदीय नियंत्रण
वना रहता है । संसद में इनके यार में प्रश्न पुषे जति
है भर संबंधित मंत्री संसद के प्रति उत्तरदायी होते है ।
नियंत्रक श्रौर महालेखा परीक्षक इनके वित्तीय मामलों में
दखल दे सकता है । अदालतों को भी निर्णय देने का अधिकार
है ओर इस प्रकार इनका ऊपरी स्वरूप कुछ भी हो,
इनकी स्वायत्तता विभिन्न कारणो से सीमित हो जाती है ।
एकाधिकार अंकुश को जन्म देता है
(ख) जब किसी क्षेत्र में एक ही संस्था या बहुत कम
सस्थाए हा तो स्वायत्तता देना कठिन होता है, लेकिन एकं
क्षेत्र की विभिन्न संस्थानों में प्रतियोगिता की स्थिति में
स्वायत्तता प्रदान करना आसान होता है । संभवतः यही
समस्या की जड़ है । भारत सरकार के सावंजनिक क्षेत्र
के प्रतिप्ठानों में कोल इंडिया, हिन्दुस्तान एयरोनाटिक्स श्रौर
इंडियन एयरलाइन्स जैसे कुछ संस्थानों का एकाधिकार या
अध-एकाधिकार है । दूसरी श्रोर माडने ब्रेड, श्रशोक
होटल श्र एच० एमऽ टी० जैसी बहुत सी. सवि-
जनिक क्षेत्र की कम्पनियां है, जिन्हें अन्य कम्पनियों सें
मुकावला करना पड़ता है । इससे स्पप्ट है कि जिस' कम्पनी
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