संशिप्त रामचन्द्रिका | Sanshipt Ramchandrika
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
167
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१४ रामचन्द्रिका
च्यापक स्वरूप में चमत्कारों का भी मदत्त्वपूर्ण स्यान है इसे कोई
अस्वीकार नदीं कर सकता ! चन्द्रालोककार जयदेव ने तो यहाँ
नतक कष डाला है किः-
प्रङ्गीक रोति यः काव्यं शब्दरयांवरलंकृती ।
श्रषौ न मन्यते कप्मादनुप्णामनलंङृती ॥
जो विद्वान श्रलद्ाररहित शब्द श्रोर श्रथ फो कान्य मानता ट चद्
यह् क्यों नहीं मानता कि उष्णता-रदित ्रगतिभी दो सक्तीद्।
केशवने भी श्रषनी कविप्रिया मे स्पष्ट कदा ₹ः-
ज दपि सुजाति सुलच्छनी, सुवर्न सरस सुवृत्त ।
भूखन चिनु न विराजद्दी, कविता वनिता मित्त ॥
उच्चकोटि को सुन्दर लक्षणों से युक्त, उपयु क्त वणधिन्यास
चाली, रस्पूण तथा सुन्दर छन्दो म लिली हे मा कविता श्रलं-
कार चिना उस प्रकार उत्कपपूणं नहीं दिखलादईं देती जिम प्रकार
उच्च कुल मे उतपन्न, सव लक्तणां सं युक्त, सुन्दर वणं वाली
लावस्ययुक्त तथा पवित्र श्राचर्ण वाली नायिका श्राभूपणों के
घिना पूण उत्कप नहीं प्राप्त कर पाती । केशव के इस कथन की
'मभिपाय इतना दी है कि काव्योत्कष को चढ़ाने वाले साधनों में
शलंकारों का अत्यन्त महत्त्वपूरणां स्थान दे । सुन्दर 'अलंकारों के
विना कविता उत्क्ष को नहीं पहुंच सकती । काव्य में रस, गुण
छन्द इत्यादि के साथ-साथ झ्रलंकारों का दोना भी 'ावश्यक है ।
केशव की आलोचना करते समय में केशव के इस चृष्टिकोण को
कमी मो नदीं भूलना चाहिये । यदि ्रलंकासें के उकछृष्ट विधान
के ही कारण कोई आलोचक केशव को देयः तथा निम्नकोटि का
कवि सममे तो उसे दम एकांगद्शीं शरोर दुराग्परी म करें तो कया
कहें । अस्तु झच हम केशव की काव्यगत. मुख्य : विशेषताओं. का
संक्षेप में विरनेपण करते हुए यदद दिखज्ञाने - का ्रयरत करेंगे कि
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