चलो, चलें मंगरौठ | Chalo,chale Mangroth
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
148
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१६ चलो, चलें मंगरौठ
जव-जव देश मे रणमेरी बजी, दीवान साहवे गले मोर्चे पर हानिरः
थे । समय-समय पर वे फरार भी रहे) उन प्र ओर उनके गाँववालों
पर सरकार की सदा ही बचा-
दृष्टि रही । उनका पता
लगाने के लिए गाँववालों
की अक्सर हो पिटाई होती,
पर मजाल क्या कि पुलिस
को उनका सुराग लग तो
जाय॑ ! जब कभी लोग
. 4. देखते कि दूर पर पुलिस
=» =+ है था रही है, तभी गाँव में
^ ० शोर हो जाता !
शसेस्वा छूटि गओ 1!
दोषान शवरुघ्न सिह ` बस, लोग सावधान हो
५ र जाते।
एक वार तो एक पुलिस अधिकारी अचानक ही भोटर से गांव में
आ धमका। एक अन्पे ग्रामवासी ने चुपके से मोटर के पास जाकर
उमरा 'हाने' वा दिया । पुछिस ने उसकी मरम्मत हो सूव की, पर
उसया बाम तो बन ही गया ! ~
ग< >< म.
सन् ३२.३३ में फनेट्गढ़ जिला जेल में दोवान साहब को देसता
था, तभी ऐसा लगता था. कि इस प्रेमिल व्यक्ति में देश भी आजादी के
दिए, देश बी समृद्धि के डिए भारी त्तडप हैं ओर उसके लिए यट त्याग
मो अग्तिम सीमा तक जाने को तैयार है।
सन् २४-२५ में दीवान साहव ने सम्मिलित परिवार बी दाए सोची
भी, पर वह अपर में ही रह गयी । ४१-४रे जेट में उन्होंने उसरी
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