पतलियों और मुह के बीच | Patliyon Aur Muhah Ke Beach

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Patliyon Aur Muhah Ke Beach by राजकुमार राकेश - Rajkumar Rakesh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पततलिया गौर मुह्‌ के वीच / 15 कलाक्ारो वाली करता है । ' चढतू अपने वारा की निष्मियता से तिलमिला कर रह गया, हार हुए जुआरी की तरह ! आधिर विप बुझा चाकू फेंका, “अपना काम निकालन के लिए लोग गधे वा भी बाप बना लेते हैं. पर चढतू चमार का पुत जो याटा पैसा भी दिया कोई चूतड तक जोर लगा से. सरकारी नौकरी वा पंसा नहीं है यहा। रग्ग मरवानी पडती है एडड म 1” पहाड़ी नालि म चद्राना का जगल । गावस्ते धांडा उपर । बारी भोरनीरवतानरा सा्राज्य । धुटनौ के वल रेगते बच्चे व॑ से गाय के जीवन मा अहसास तक नही । बरसात में उच्च रक्त चाप के मरीज के यून की तरह उफनता पहाड़ी नाला भाज कल पानी वी बूद के लिए तर रहा था। ठक स्वे ठक टकियो पर पढ़ती लोह की हथौड़ी वी क्तिनी ही आवाज नीरबता को बेंधती हुई लगातार वज रही हैं। विशालकाय चट्टानों के टुकड़े करती विवराल ध्वनिया । बजती ही जा रही हैं । भनवरत । चढतू, घौना भौर भूरा की चिवालदर्शी सेना दैत्यो सी कुम्प चट्टानों से जूझ रही है । दो चार चरवाहे आमने सामने के जगलो मे होए होए' अथवा जिंदा रह मरणजोगया' की आवाजो से चुप्पी की पसलियो में एकाघ कील गाडकर पुन चुप हो जाते है। कभी कोई भुला भटका पसरी प्यास से व्यादुल किसी घने वृक्ष की छाया म दुबका चहचहा देता है । चढतू 1 हथीडी छोड माथे का पसीना पोछा । सामने रेत तले दबी आग की बुरेदा और चिलम भर ली 1 भूर मे काम रोककर मुद्द पर हाथ फेरा । मिट्री की सुराहीनुमा भीली से लोटे मे पानी उडेलकर पिया और चढतू के सामने आकर पत्थर सं पीठ टिका पसर गया | घोना घन से चट्टान में गडी टक्यों पर वार कर रहा था । ठाक छक ठठाक 1 और चट्टान दो फंड । भूरे ने चबाते हुए तिनके को मुह से युक्ते हुए आवाज दी, आजा ओोए क्माऊ पूत सार ले एकाघ सूटा !” चढतू मुह मौर नाक से घुमा उग्रलते तनिक खासते हुए बोला, “कमा ले प्यारे लोडो का पेट भरने के लिए, जब्बरा होगा तो भुखा मरेगा कौन पूछेगा सब अपने हाथ का आसय ही भगवान है, भाञ्मा 1 धोना सा गया। चिलम भूरे के हाथ मे थी । बैठते हुए अपने पोपने सुख की हेंवा वा नियरण त्याग बोला, “ले जा औरे दे मारिष शटा 3 भूरे ने गहरा कश खोचा । भरे हुए फेफडो को खाली करते हुए चिलम घौना




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