आगम मार्ग प्रकाशन | Aagam Marg Prakashan

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Aagam Marg Prakashan by श्री मक्खनलाल शास्त्री तिलक - Shri Makkhanlal Shashtri Tilak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( दे ) में श्री १०८ आचार्य बातिसागरजी आदि की शुभ प्रेरणा-- छान्नावस्था मे नेमीचत्द जी भोरेना भहावि भे अध्ययन करने आये और प्रवेशिका से लेकर शास्त्री कक्षा तक अनवरत रूप से अध्ययन किया । आपके साथ अध्ययन करने वाले श्री प० लालवद्दादुरजी हि, श्री प० कुस्जी बी पी, श्री १० श्यामसुन्दर गी शास्त्री, श्री प० भागचन्दजी ग मादि सदाध्यायी रहे ! महाविद्यालय के प्राचाये श्रीमान्‌ प० पी शास्त्री के सान्निध्यमेमापनेय केसाथही निर्मल रभी किये और सिद्धान्त हल मोम ग्रत्यो का. † तक उच्च कोटिका ग 1 आपका अत करण तो त्यागी वैरागी जनो की खोज में लगा था । कुछ समय पीछे श्री १०८ आ० प्रवर शातिसागरजी महराज का सध फिरोजावाद पघारा जिसमें मुनि श्री वीरसागर जी मुनि थी १०८ सुधर्मतांगरजी आदि थे। आपने इन मुनि रलो की पवित्र प्रेरणा से श्री १०८ आचायं शास्तिसागरणी के समीप ष्टभूल गुण धारण किये तथा जनेढ घारण कर पक्के श्रावकं अन गये । समय बाद ही श्री १०८ आचाये कल्प चन्द्रसागर जी के सामिध्य में शूद्र जल का त्याग किया। अब लाप संघ में ही रइकर अ मे श्री १०४ आर्पिका घर्ममतीजी को अध्ययन कराने लगे। _ आथिकस से होकर गाप गैची (एटा) में है वर्ष तक रहे। तदनन्तर ३ वर्ष प्यन्त पुरवालियान में ३ वर्ष चौसू (जयपुर) मे १॥ वर्ष (नाबा) कुचा मनरोड मे रहे। यही पर थी १०५ बीरसागरजी के ˆ आपने दूसरी प्रतिमा के श्रत धारण किये महावीर जयन्ती के दिन । पुन कुचामन मे ही इन्ही मुनि श्री से सुदी ३ स० २००६ में प्रतिमा केब्रत धारण कर ब्रह्मवारी हृए 1 अनन्तर श्री १०८ [ये




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