बापू की खादी | Bapu Ki Khadi

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Bapu Ki Khadi by कृष्णादास गांधी - Krishnadaas Gaandhi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(श) में कपड़ा, अनाज, आदि जीवन के ठिआे विशेष आवश्यक चीजों के अुत्या- दन्‌, वितरण तथा मूह्य पर नियंत्रण उगाया गया और जिस कारण खादी मंडा् पर- टूटने वाढे दीगर खादीवारी लोगों की मीड कम हो गयी, और सच्चे, खादीधारी ही खादी के ग्राहक रदे । फिर मी शान्दोठन के कारण खादीघारियो की संख्या मितनी बढ चुकी थी कि केवल शुनकी मांग पूरी करना भी चरखा रध के व्यि असमव था। जिरसलिये खादी का काम केवछ चरखा संघ के आधीन न रख कर स्यानीय लोगों की सददकारी संस्या बना कर अुनके द्वारा चढाना जरूरी छगा । झुद्देय यद्द कि अगर वे ही मपे लवि अपनी भावइ्यकता की खादौ तैयार कर लू तो सरकारी दमन, हुढाभी की मुश्किर्टे, तरदद तरदद के क्षन्य कानूनी प्रतिवन्घ, आदि अडचरने बहुत कुछ कम हों, और -खादी की प्रगति में सुविधा हो । जिस इष्टि से जेठ के वार चरखा संघ के जो कार्थकर्ता थे सुन्होंने .खादौकार्य के विकेन्द्रीकरण की योजना बनायी । विकेन्द्रीकरण का श्रइन खादी कार्यकर्ताओं के सामने था । झुसी वक्‍त सन्‌ ४४ में संघ के प्रधान कार्थेकर्ती जल से मुक्त हु, और गांधी- जी मी जेठ से बाहर आये । सरकार ने खादी काम को चोट पहुंचा थी जिसका गांधीजी के दिल पर बद्डत अपर इआ और खादीकार्य को नयी इष्टि से चठाने के अपने विचार झुन्दोंने खादी कार्यकर्ताओं के सामने ' रखे | झुन्दोंने, कहा कि“अगर सरकार की मेदरवानी पर खादी को जिन्दा न रहना दो तो हमे खादी को घर की चीज वना देना चाये | यनि ` अव खादी का काम मजदूरी के बजाय चस्त्रस्ावडंवन' के लिये होना चादिये। छोग ख़ुद गांव मैं.दी जुलादों से सूत बुनवा कर पह़िंनें तभी खादी का सच्चा अचार इमा जैसा माना. जावेगा ।-चरखा अहिंसा: का




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