स्वराज्य - दर्शन | Swarajya Darshan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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राष्ठीय-हुकार 1 न्वत रोचे मेनचेएर वाले ऋरलायें लंकाशायर वलि 1 पड़े हमें भी जीवन लालें, हम फिर क्यों गम खायेंगे ॥ हम०-- खद्दर ही हो विश्व हसाय, खद्दर होसर्व स्व हमारा । खद्दर ही मम जीवन तारा, खद्दर मय हो जावेंगे ॥ हम खदर को अपनारयेगे ॥ असल रूपा (र) असहयोग-प्रण । करो ये प्रतिज्ञा करू मातु सेवा, उरगा नक्ष में के देश सेवा । चले तीर चादे चलते तोप गाले, सर्हेमा समी को श्रसदयोगको ले। हँसी से खुशी से भरे करटेगे चे जेत जाय नहीं पे दंगे ! स शांति से ्राटमवल पे उरेगे मरं देश पै देश कोदीरसेगे ॥रौ - 52 \&) राष्ट्रीय-हुड्ार । डुलारे देश भारत के सभी संकट मिटायेंगे । समय है. काम करने का नहीं वातें चनायेंगे ॥ डुलारे० ॥ कटिनतर चिज्न वाधायें डरायें झानकर हमको । खरे म नदीं हरगिज नियम श्पना निमायेने ॥ दुलारे० 1 9




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