भागवती कथा | Bhaagwati Katha

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Bhaagwati Katha  by श्री प्रभुदत्त ब्रह्मचारी - Shri Prabhudutt Brahmachari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(€ रहे दोंगे । हम सो उनके यन्त्र हैं, उससे थे लेख लिखा लें, पुस्तक लिखा ले, कीन करा ल, व्याख्यान दिला जं, भ्रमण कर. लः नेतागीरी करा ले, सभी उनके दाथ में है, उनके संकल्प मे घोल कौन सकता है, नलुनच करने को सामथ्य किसमें दे । जैसा थे कराते हैं, इच्छा 'निच्छा पूर्वक करना ही पड़ेगा । ्राजकल लेखन कार्य बन्द है, श्रमण चालू. है, यद्‌ श्राधी भूमिका वम्बई से कलकत्ता आते समय बायुयान में ही लिखी है, श्र कलकत्ते से दूर भगवती आगीरथी क तट पर बालो नामक स्थान में वांगड़जी के बगीचे में चैठकर इस भूमिका को पूरी करते हैं । गोहत्या आंदोलन में यदि इस शरीर का भगवान्‌ ने बलि- दान कर दिया, तो इस नित्य छुच्छ और नाशवान्‌ शरीर का सदुपयोग हो जायगा, पाठक इन साठ खणडों को ही पढ़कर सन्तोप कर लें । और किसी प्रकार यद शरीर चच गया शरीर असु प्रेरणा हु तो श्रागे के खण्ड किर 'छाते रहेंगे । श्रव तक लोगों को वहत शिकायतें श्रादै' “भागवतो कथा? के श्रागे ॐ खर्ड स्यो नदी श्राये, यै पिले किसी खंड मे कह भी चुका ह माय दिवाला निकल गया था, चिन्तु उप्त दिवाले को हमने धोपित श्रमो तक नीं करिया । श्रव उन श्यामसुन्दर की कूपा है, कि दिवालिया भी हुए तो किसी का मारकर नहीं हुए । साठ खंड तक की दी दक्षिणा ली थी, भ्रव यह साठवाँ खण्ड चाठकों की सेवा में पहुँच रहा है लेना पावना बेबाक, पाठक लिख हूं कि चुकता मर पाया ! छाब श्रागे फिर से व्यापार का लेन देन ारम्भ होगा । देर सबेर हो ही जाती है, फिर भी पाठकों से हम अपने झपराधों के लिये बार वार करबद्ध प्राथना करते हैं; कि थे हमें हृदय से क्षमा करें, हमने बहुत लम्बी प्रेतोत्षा कराई ! किन्तु प्रतीक्षा में.सी एक सीठा मीठा आनन्द हो होता है, लैसे गु दूगुदी से दम. मापते ह, कसते यले को मना करते हैं, -उससे पिंड छुड़ाना




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