श्री राम कृष्ण वचनामृत [भाग 2] | Shri Ram Krishan Vachnamrit [Bhag 2]

Shri Ram Kirshan Vachnamart [Bhag 2] by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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धपः यीप्हप्ययशनामृत ,की पी--ठोकशिक्षा के ठिए । श्रीडृष्ण साक्ात पूर्ण ब्रह्म हैं; परत उन्होंने भी तपरया की थी, हव रापायख उें पड़ा हुआा मिल गया था | शष्पं पष्य है शोर राधा प्रकृति, चित्पदि भावा, दरति है । रया प्रति है--मिगृणम्री; इनके भीतर सतत, एवं बौर तम दीन गुण है । नैसे प्याज का िठका निकालते जागो, पले टार भौर श्याल दोनो र का मिज षा हिस्सा निकलता है, फ़िर दाए वता दत है, फिर सफंद । पैम्पय शात्ों में छिसा है-कामराधा, प्रेमराधा, नित्पराया । कामराया भन्दावदी हैं, प्रेमराधा धीमती । गोपाल को गोद में लिए हुए वित्पदधा को गहद ने देसा था 1 यह्‌ चित-यश्ि मौर वेदात काम्य दोतों बगेद है! जठ और उसकी हिमशस्ति । एनी शी हिमः को सोके मे पानी को भी शोचता एटता है थोक पानी को पोचने है उसकी हिमशवित मी था जाती है । एप की हिंद गति को पोतों से सौंप को मी सोचना महठा है । ब्रह्म कब कहते हैं है--जव मे चिध्तिय है या षयं ते सिंछिप्त हूं । पुष्प जब एप महूनता है, तथ भी बहू पुरप ही रहता है। पहले दिगायर था, ˆ थद मास्वर दो गया ई--फिर दिगस्वर हो सकता हैं (सी के भीतर लहर है, परततु सांप को एमे युद नहीं होता । जिसे बहु बगटता है, उसी के लिए गहर र्य स्ययं निर्ित्त हूँ 1 नाम बोर रुप रहीं है, बह अति फो दवतं । बीता में हनुमान में कह्टा था--'वत्स, एफ रप में में ही राम टूं और एक रुप सै मं्ता व्नी हुई हूएक रुप ऐ में दाद्र हूं और एव रुप हे इग्द्राणी हू--एक रुप छे ब्रह्मा हूं जोर एक रुप मै बद्मायी--पुके




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