नूतन सुखसागर | Nutan Sukhsagar
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
35 MB
कुल पष्ठ :
712
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ध्याय २ ® श्रीमद्धागवत मादातम्य ® ६
रंगी । हे साधु ! आप दयाजु ने मेरी बाधा तो क्षणमात्र में हर ली
परन्तु इन ज्ञान वेराग्य नामक पुत्रों को चेत नहीं हुआ, सो इन्हें
सचेत करो । श्री नारद मुनि उस भक्ति का यह वचन सुन उन दोनों
ज्ञान और वेराग्य को अपने हाथ से सहारा देकर जगाने लगे ! जब इस
रीति से वे न जागे, तब कान के निकट मुख लमा फर नारदजी ने उवे
खर से पुकारा कि हे ज्ञान ! शीघ्र जागो और हे वैराग्य ! शीघ्र जागो ।
इस प्रकार पुकारने से उन्होंने जब नेत्र न खोले तब नारदजी ने वेद
वेदान्त के शब्द सुनाय बारभ्बार जगाया तब वे दोनों बलपूर्वक महा
कठिनता से उठे। किन्तु बहुत निर्बल होने के कारण फिर गिर पढ़े,उनकी
यह दशा देखकर नारदजी को महा चिन्ता उत्पन्न हुई और वह गोविन्द
भगवान का स्मरण करने लगे । भगवान का स्परण करते ही आकाश
वाणी हुई कि हे तपोधन ! खेद मत करो, तुम्हारा उद्यम सफल होगा,
निभित्ततुम सक्क्म का आरम्भ करो, और वह सकर्म तुमसे
महासा लोग वणेन करेगे । सकं करने मत्र से दी इन दोनों की निद्रा
सहित बृद्धता जाती रहेगी । इस वाणी को सुनकर नारद जी विस्मित
होकर विचार करने लगे कि महात्मा साधुजन कहां मिलेंगे और साधन किस
प्रकार देंगे । सूतजी बोले कि नारदमुनि इती सोच विचार में उन दोनों
को वहीं छोड़कर महात्मा साधुओं को खोजने को चल दिये और प्रत्येक
तीथों में जाकर मार्ग में मुनोश्वरों से पूछने लगे । नारदजी के वृत्तांत
को सवने सुना, परन्तु किसी ने निश्चय करके ठीक उत्तर नहीं दिया ।
तब नारदजी चिन्तातुर होकर बदरी बन यें आये,ओौर यह निश्चय किया
कि यहां तप करूँगा ! इतने में कोटि सूर्य के समान तेजवाले सनक आदि
मुनियों को अपने सन्मुख खड़े देखकर नारदजी बोले कि हे युनीश्वरो !
इस समय बड़े भाग्य से झापका समागम हुआ । राप सव प्रकार बुद्धिमान
और शाख्रवेत्ताओर योगिराज हो,और सबसेपहिले उत्पन्न होनेपर भी सदा
पांच वर्ष के ही बने रहे हो । झाप सदा वैकुगठ में रह कर हरि भगवान
के गुणानुवाद गति रहे हो, ओर भगवत् लीलारूपी अभृत रस से मत्त
होकर केवल एक् कथा माव से दी जीते हो और हरि शरणम् एेसा
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