हिंदी कथा कोष | Hindi Katha kosh

Hindi Katha kosh by अज्ञात - Unknown

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
१४ | नाम ! ॥छग्वेद म इनके नाम पर दो चा तथा एक सूक्त प्राप्त होते हैं । इद्रवमैन-महाभारतकालीन मालवा के राजा जो प्रसिद्ध . गज 'श्वस्थामा के स्वामी थे और कौरवों के पद्ष में लड़े थे । इंद्रसावर्यि-मन्चु का एक नामांतर । भागवत के श्रनुसार ये चौदहवें मन्वंतर के मलु थे । इंद्रसेन-१. युधिष्ठिर के सारथि का नास । २. छपभदेव तथा जयंती के पुत्र का नाम । ३.राजा नल का पुत्र । ४. मादिप्मती के एक राजा । £. राजा कूच का पुत्र । ६. सहासारतकालीन एक कौरवपक्षीय राजा । इंद्रसेना-राजा नल की कन्या । इचालव-एक ऋषि का नाम जो क्‌ शिप्य परपरा म व्यास के शिप्य माने जाते हैं । इच्चाकु-१. वैवस्वत मनु के पुत्र तथा सूरयैवंश फे मथम राजा, जिन्दोने अयोध्य मे कोखल रणल्य की स्थापना की थी । प्रसिद्ध राजा रासचंद्र जी इन्हीं कं वंशज थे। मनु की छींक से इनकी उत्पत्ति होने के कारण इनका नाम इषवाकु॒ पढ़ा । इनके सौ पुत्र कहे जाते हैं जिनमें चिकुक्षि, निमि और दंड चिरोष प्रसिद्ध द । शनि ध्रादि इनके पचास पुत्र उत्तरापथ के तथा शेप दक्तिणा- पथ फे राजा हुए थे। २. एक दूसरे हषवाकु काशी के राजा हुए थे जिनके पिताका नाम सुवधघुथा) इनकी उत्पत्ति दषदंड से होने के कारण इनका नाम ॒दृषवाक पढ़ा । इडा-१. वैवस्वत मनु की कन्या का नाम जिसकी उत्पचि प्रजाखष्टि के अभिप्राय से यक्षुरड म डाले हुए हविष्य से हुई थी । इसका विवाह बध के साथ श्रा जिससे पुरूरवा नामक पुत्र उत्पन्न दुआ । 2० ` पुरूरवाः । शतपथ ग्राह्यण के अनुसार डा की उत्पत्ति उस यन्ञिकुर्ड सै हुई थी जिसका निर्माण मनु ने संतानोत्यत्ति के संकल्प से किया था और उसका पाणिय्रहण मित्रावरुण ने किय। था । २. मानव शरीर की एक नादी का नाम जिसका प्रयोग संस्कृत फे योग साहित्य तथा हिंदी के संत साहित्य मे प्रायः मिलता है । इदा, पिंगला तथा सुपुम्ना नादिर्यो को क्रमश: गंगा, यमुना तथा सरस्वती का प्रतीक मानागयादहै। इड़पिड़ा-दे* 'इलविला? । इध्मजिह-श्रियनत तथा चहिंग्मती के दस पुत्रों में से हितीय का नाम जो प्लक् दवीप के स्वामी ये । इरावत-झजुन फे एक पुत्र का नाम जिखकी उत्पत्ति एेरा- चत नाग की विधवा कन्या उलूपी से हुई थी । नागशत् गरुड दवारा जामाता का वध दने पर ररावत ने झपनी पुन्नी को अजुन के हाथ समर्पित कर दिया । इसी के गर्भ से इरावत (अथवा इराचान) की उत्पत्ति हुई जिससे महाभारत कु में कौरवों का प्रन्नेर संदार किया और द्यत सै दुयोघन-परीय चार्यश्टेग नामक राक्षस द्वारा सारा गया । इरावती-रावी नदी का नामांतर । इसका यूनानी नाम दिद्रामोरीख है । ४ ५ [ इंद्रवमेन-उकथ इतराज-कर्दम अजापति के पुन्न तथा वह्लीक देश के पुक प्राचीन राजा । इनके संबंध में कथा प्रचलित है कि एक चार ये शिकार खेलते-खेलते ऐसे वन से पहुँच गए जहाँ जाने पर पुरुप खी में परिवतित हो जाता था । फलतः समस्त सेना सृद्दित अपने को _ ख्री रूप में पाकर वे बड़े चिंतित हुए और उस स्वरूप से मुक्ति पाने के लिए शिव जी की आराधना करने लगे । तु शिवजी ने श्रपनी झससथता प्रकट की । निदान पार्वती की तपस्या करने पर उन्हे चांशिक सफलता प्राक्च हुदै, जिसके अनुसार वे (6 महीना पुरुप प्रौर एक मीना खी के रूप से “रहने लगे । इलविला-एक देवकन्या जिसकी उत्पत्ति अप्सरा श्रलंदुपा ततथा तृवि से मानी जाती है । एक मत से यह विश्चवा की पत्नी घर कुबेर की जननी मानी जाती है । दे० कुवेरः मतांतर से यह पुलस्त्य की पत्नी तथा चविश्रवा की जननी मानी जाती है । दे० (पुलस्त्य? ¦ इलवुत-छसीघ के नौ पुन्नों में से एक जो जंदूद्वीप के स्वामी माने जाते हैं । इला-वैवस्वत सनु तथा श्रद्धा की कन्या । मनु ने युत्रोत्पत्ति की लालसा से यत्त क्रिया कितु उनकी भायां श्रद्धा कन्या चाहती थीं जिसके लिए वे नियमपूंक दुग्धपान करके रहती थीं और दोता से कन्या के लिए ही प्रार्थना कर- चाती थीं । फल-स्वरूप इला नामक कन्या की उत्पत्ति हुईं । मनु ने चसिप्ठ से झपने दुगख का निवेदन किया जिनकी म्रार्थना से श्रादि पुरुषने दला को दी पुरुप-रूप में परिवतित कर दिया जो सुदुन्न के नाम से मसिद्ध हुआ । दे० 'सुचुन्न' तथा 'वैवस्वत” । जन दइलापत्र-द्वादश प्रधान नागराजं भं से एक जिन्ड अष्ट- कुली सदासपं या महानाग भी फदते दं । भक्तमाल फे अनुसार ये भगवान्‌ के मंदिर के द्वारपाल हैं रौर इनकी सम्मति के विना कोद उसमें प्रवेश नहीं पा सकता ! रतः मगवान्‌ का सान्निध्य प्राप्त करने के लिए पहले इन्हें मसन्न करना आवश्यक हे । इलावृत्त-सेर पर्वत के मध्य में स्थित एक वन अर्हा शिव का वास कहा जाता है । इष्टिपसप-यज्ञ की हवन सामग्री के चीटों का साम्रूहिक नाम । व्यापार साम्ब के कारण यज्ञ सामग्री चुराने वाले राक्षसों को यह संज्ञा दी गई थी । इंश-१. शिव का नामांतर । दे० 'शिव' । २. एक उप- निषद्‌ का नास । ईशान-शिव यथवा रुद का रूपान्तर जो उत्तरपूर्वं कोण के स्वामी माने गष हैं । ईश्यरकृष्ण-सांख्य-कारिका के प्रणेता एक प्रसिद्ध छाचार्य का नाम। ईश्वरसी-नाभा जी कै ्जुसार एक प्रसिद्ध राजर्वशीय वेप्णव भक्त उकूथ-स्वाहा के पुन्न का नाम । विप्णुपुराण के मत से ये




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now