आँगन | Aangan

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Aangan by रामकुमार भ्रमर - Ramkumar Bhramar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आगन | ६ असल में जया के गणित ने सोचने के लिए बाध्य किया है। थोड़ा बहुत उस दिन भी सोचा था--जब इसी वेश्या-वाजार की जया की तसवीर उसने नैनीताल के एक स्कूल म--उस न हीः सी कच्ची के पास देवी थी ! उस पल भी लगभग उसी तरह झटका लगा था, जैसा दो दिन पहले लगा--तंत्र जब अनायास ही जी० वी ० रोड स्थित कई मजिला बिरषिंडग की सीडिया चढता, पलकें झपकाता अजित सखाराम इनामदार के साथ एकदम जया वे सामने जा खडा हृ या } वह एक सजी धजी भौरत के साथ दीवान पर अधतेटी पडी हुई किसी वात पर विलधिला रही थौ। सहसा वह वुरी तरह्‌ समकर भजित को देखने लगी थी । उसके पाउडर से पुते चेहरे पर ननायास ही बदलियो के कई टुकड़े तिर आये ये । तेज-तेज भागते हुए । और अजित भी क्या कम विचित्र स्थिति भोग रहा था ? होठों पर पान कौ मेहदी, नशे मे थम यम कर डूपती पलकों, रेशमी कुरते पर नशे में कव, किप पल पीक के कुछ छीटे गिर गये थे--अजित को मालूम ही नही । पर उस समय तो अजित वो कुछ भी मालूम नहीं। और जया को शायद सब मालूम । उसका वापता स्वर अजित के कानों को शियोडता हभ, “तुम? ” एकु पल धम गयी थी वह्‌। अजितके करीब आकर रुरो तरह सिव्पिटति हए उक्तने पुछा धा, “'तुम--तुम अजित होना? भात्तरीवाले पण्डितजी के लडके 1“ अजित चुप । जमकर रह्‌ गया था । नशा गायव । एमे, जसे मजित को छोडकर अचानक उदी सीदियोसे दन्‌ दन नीचे उतर भागा दहौ-जिहं चढ़कर अजित ऊपर आया था। सखाराम इनामदार ने हैरत से सवाल किया था, “अरे, तुम इ हू पहले से जानती हो-चदारानी ? “ चदारानी। सादन वटोरकर अजित फिरसे देवने लगा थावद्‌ वेहरा। यह चदारानी दै? नही--अजित जानता है कि यह्‌ है जया। उसके मास्टर राजनाय भटनागर की साली देवनास्वल्प राजनाथ भटनागर की साली। राजनाथ ने शब्दज्ञान दिया है अजित को । एक अजित को ही वयो--कइयों वो पर जया. और यहा ?




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