जन्म भूमि विवाद | Janm Bhumi Vivad Ayodhya Controversy
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
200
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बिवाद क्यों : हिन्दू पन्न ३
के ग्रंथ मात्र राजन तिक प्रय हैं । इनका आत्मा-परमाह्मां के सुकष्मतम अध्ययन से
कोई सम्बन्ध नहीं हैँ। ये अपने अनुयाधियों को काल्पनिक संसार के लोभ और
भय से इतना धर्माद बना देते हैं कि उनका अपना विदेक शुन्य हो जाता है ।
उपरोक्त कारणों से ये सस्कृतियाँ अन्य भारतोय सम्कृतियो में अब तक घुल-
मिल न सकी, न भविष्य में हो इसकी सभावना है। दोनों के चिन्तन में अन्तर है ।
जैसे ये शाकाहार पर बल देती हैं, वे मासाहार पर। ये निवृत्तिमार्ी हैं तो वे
सवृत्ति सार्गी । लिवृत्तिमार्गी का अर्य है “लेन ब्यक्तन 'भुंजीवा” यानी उस ईश्वर
का दिया हुआ, उसके नाम से त्याग कर, यया प्राप्त भोगो और दूसरे के धन की
कभी इच्छा न रखो । जब्रकि संवृत्तिमार्गी का अर्थ होता है, जिसकी प्रवृत्तियों मे
तामसिक वृत्तियो ने प्रवेश कर लिया ही । अर्यात् सव कुछ पाने के लिए मव कुष्ठ
दाँव पर लगा दो ।
दोनो के आदशें में भी अन्तर है । हिम्दू का आदर्श त्याग है । यहाँ वादशाहों
का बादशाह सन्यामी होता है जब कि इस्लाम और ईमाइयत के असवाव शासन
और सुन्दरी हैं । इस्लाम की जन्नत में शराव की नदियाँ बहती हैं। ईमाई इससे
भी आगे बढ़ कर हैं। उनके पोप धरती से ही स्वर्ग की सीट रिजर्व कर देते हैं ।
कुल मिलाकर इस कबीलाई, ऊलजलूल सस्कतियों का समन्वय भारतीयों की
खोजपूर्ण , बुद्धि निप्ड सम्कृतियों से नही किया जा सकता । धीरे-धीरे ११०० वर्षों
की गुलामी के पश्चात् मात्र ४० वर्षों मे जो हिंद्ठुओ का क्षात्धर्म जगा है, बहू
अगले दस वर्षों में विश्व से तमोवृत्ति समाप्त कर देने की स्थिति तक शकितिशाली
बन जाने की संभावना है ।
यहाँ इस्लाम और ईसाइयत के जिन दोपों को गिनाया गया है, हमारे कुछ
बुद्धिजीवौ यह् शा उठाते हैं कि चिन्तन और आदर्श की कसौटी पर तो ऐसे दोप
हिन्दू धर्म में भी विद्यमान हैं! ईसाई बौर इस्लाम धर्म के मुल संस्थापक तो
भारतीय ऋषि मुनियो, सन्पासियो नौर अवतारों को तरह ही परम पवित्र थे ।
ईमा स्वयं एक संब्यामी थे और कहते थे कि 'एक सुई के नेढ़े से कट गुजर सक्रता
है किन्तु ईश्वर के स्वर्ग द्वार से कोई अमीर अन्दर नहीं जा सकता ।' मुहम्मद
पैगम्बर जिम दिन मरेतो उनके घरमे तेल नही धा भौर उनके कपडो मेकमसे
कम सात पंबद लगे हुए थे। यानी वे अपने राज्य के उपभोग शून्य स्वामी थे और
ईएवर के आदेश से ही उन्होंने तलवार उठायी एवं राज्य स्थापित किया था, जिस
प्रकार गीता के भगवान के आदेश से अर्जुन ने शस्त्र उठाया भर राज्य जीता ।
फिर हिन्दुओ के स्वर्ग में ही देवगण सोम पीने हैं, और अप्सराओं के साथ स्वच्छ
भोग करते हैं। फिर किस प्रकार अनुयायियो के भ्रष्टाचार से ट्ल्टू घर्म अछूना नहीं
है 1 घोष लीला जैसे छूतभछूत जैसे पाण्ड हिन्दूधमे के पोगा पड़ितो ने भी बहुतेरे
चलाये हूँ। जिनका धर्म-सुघारको ने विरोध भी किया है । फिर कँसे हम हिन्दू
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