धर्म निरपेक्ष में इस्लाम | Dharma Nirapeksha Bharat Men Islam
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
132
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
मुनीश सक्सेना - Muneesh Saxena
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मुशीर उल हक़ - Mushir Ul Hak
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)घम-निरपेक्षता ? जी नहीं ** 17
कोई भी व्यक्ति उसे साक्षी जानकर ईमामदारी शरीर सच्चार्ईके साथ कंसे शपथ
ले सक्ता है?
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अ्रनेक भारतीयों ने भारतीय राज्य-सत्ता की नीतिं के रूप में घर्म-निरपेक्षता की
परिभाषा इस ढंग से की है कि उसमे “ईश्वर के प्रति प्रास्थाःकोनतोग्रस्वी-
कार किया गया है श्रौर न ही उसे कोई नगण्य स्थान दिया गया है । उदाहरण
के लिए श्री सर्वपत्ली राधाकृष्णनू का दृढ़ कथन है कि धर्म-निरपेक्षता का “पथ
न प्रधमं है, न नास्तिकता, न ही उसका भ्र्थं है भौतिक सूख-सूविधा पर वल
देना । इस सिद्धान्त में केवल श्रात्मा से सम्बन्ध रखने वाले मूल्यों की सार्वत्रिकता
पर धल दिया गया है जिन्हें प्राप्त करने के मार्ग विभिन्न हैं ।* दाब्दकोप में
सेक्युलरिस्म' का जो भ्र्थं दिया गया है उसका उत्लेख करते हए प्रस्यात क़ानून-
विद् श्री पी० बी° गजेन्द्र गडकर कहते हैँ : “इस बात प्रबल देना प्राव्यक
है कि मारतीय धमं-निरयेक्षता इस नकारात्मक कोटि मे नही श्राती । वास्तव में
भारतीय धर्म-निरपेक्षता मानव-जीवनमे धर्म की उपयोगिता श्रौर साथंकता
दोनों ही को स्वीकार करती है (...संविधानके प्रसंग में धर्म-निरपेक्षता का श्रं
यह है कि भारत में जिन धर्मों का पालन किया जाता है उन सभी को समान
स्वतन्त्रता झौर संरक्षण का धधिकार प्राप्त है 15
बहुत -से मुसलमान भी धमं-निरपेक्षता का यही प्रथं समभते दँ ! उदाहरण
के लिए संयद प्रावि हुसेन 'धमें-निरपेक्षता श्रौर वजानिक मनोवृत्ति के विषय
में लिखते हैं :
हमारे देश के लोगों में, श्र विशेष रूप से मुसलमानों मे, धर्म-निर-
पेक्ष दृष्टिकोण या धमें-निरपेक्षता के बारे में बहुत गहरी आ्ान्त घारणाएँ
हैं। वे इसका भ्रथे यह समभते हैं कि यह एक ेसी मनोवृत्ति है जो जीवन के
एक सर्वोच्च मृत्य के रूप में घर्म को सर्वेधा अझस्वीकार करती है। पर
वास्तव में घमं-निरपेक्षता प्रावश्यक रूप से न तो धर्म की विरोधी है न
उसके प्रति उदासीन ही ।*
एक श्रन्य मुसलमान के अनुसार, धमं-निरपेक्षता “केवल ऐसी विचार-प्रवृत्ति
का नाम है जो प्रत्येक म्राष्यात्मिक सिद्धान्त प्रथवे घार्मिक पंथ के साथ इसलिए
मेल खाती है कि ये सिद्धान्त श्रथवा पंथ मनुष्य को उसके इस अधिकार से वंचित
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