लोकवित्त | Lock Vit

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Lock Vit by कृष्ण स्वरुप - Krish swaroop

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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6 लोरवित्त बला वी उपर्युक परिभाषा मे अनुसार लोववित्त वो कया स्तीकार किया जा सकता है। सोकवित उस समय बला ना रुप से श्ेता है जब एवं देश की सरकार विभिन्‍न स्रोत से प्राय एवय वरके उसे विभिन्त सदों पर व्यय वरते का ऐसा प्रयास बरती है जिससे सामाजिक कल्याण मे श्रधिकतम वृद्धि हो। श्राय जुटाने बा वास मरल नी ह्येता + पतनी रद्वि क्सिस्नोत वे श्राप्ठ करनी है यह्‌ एक दरद ग्रोर कुशन श्ाधिव' विशेषज्ञ ही निश्चित कर सकता है। इसी प्रकार व्यय की मद तया उस पर व्यय किए जाने वाल घन को राशि को भी ध्याव में रखना पडता है। यदि श्राय एवज करते समय उसका बटवारा विभिन्‍न स्रोता में उचित नहीं हुमा या श्रनुचित मदो परर उसे सर्च कर दिया गया तो जनता द्वारा उनके अति रोप उत्पन्न होना स्वाभाविक होता है । इसतिए वित्त शासनी इन कियाप्रों वो सतकंता से सपनन नरता है। महू राव लोकवित्त दे सिद्धातों को सही व्यावहारिक रूप देने ना प्रयात है। वित्त मची भी वठोर प्रालोचनामी से वचन के लिए ऐसा ही वरता है। शर्त लोक- वित्त को निर्ियत रुप से कला कहा जा सकता है । इस सदमें में प्लेहन का विचार बहुत उपमुक्त प्रतीत होता है । उनका कहना है, कि उन समस्त तथ्यो षा जिनका प्रध्ययत सोगवित्त में होता है, मली प्रवार से सप्रह किया जा सकता है आर उनसे ऐसे सही निष्कर्ष निकाने जा सकते हैं जी कि श्रपं थास्त्र प्रौर राजनी तिशास्त्र से साधारगतया नहीं निवालि जा सकते । जब भी एप विज्ञान लिशियित स्वरूप पारण वर लेता है, वहुथा उसने सिद्धात्त को किपाशील बरना सरल तथा बाछनीय हो जाता है । इस प्रकार हम इस निव्वपं पर पहुचत हैं कि लोग वित्त विज्ञान श्रौर बला दोनों हूं। सोकवित्त में श्राय जुटाने तथा ब्यय वें सिद्धातों वा श्रघ्ययन विज्ञान का पल्ल घारण करता है। जब इन सिद्धातों तथा नोतियों को सरकार दारा वित्तीय समस्या बौ टन करने में प्रयुक्त किया जाता है तब वह कला का रूप घारण करता है । विपय-सामग्री तथा केत्र तोक्विंत्त को बिपय-सामग्री के झतगंत, सरकार शोर उससे सबधिठ तथा उसके श्रठगंत आने वाली सार्जनिक या लोक सत्ताएु प्रलामत तया जनता के कल्याण वे लिए थिस कार विभिन्‍न सदों से पल जुटाती हैं, इसपया श्रध्ययन दिया जाता है। लोवबित्त के अ्तगंत राज्य की केवल उन क्रियाशों का हो श्रध्ययन नहीं किया जाता है जिनवा सवय आआनकयकतायों को सामुहिव सतुप्टि से होता है वरनू राजकौय क्रिया वा प्रध्ययन वित्तीय दृष्टिकोण से किया जाता है । इसलिए हम कहू सकते हैं नि लोववित्त की विषय सामग्रों मे राजवीय वित्तीप जटिलताश्रो की गुत्यी को सुलमाने वा श्रयत्त विया जाता है । हाल मे लोर वित्त से सयुचितत प्रकादित पुस्तवों के द्वारा इसकी वियय-सामसग्री में कुछ परिवर्षन श्राया है । श्रो०पींगू की पुस्तव “लोक्वित्त' के सन्‌ 1928 वे प्रथम तथा रानु 1947 के द्विसीय सस्क रण के मध्य लोकबिततु की वियय-सामग्री में मौक्तिक परिवर्तन मप्‌ हूं। प्रथम सस्व रण में युद्धवित्त तथा द्विवीय सस्व रण में राजकीपीम श्ियामों द्वारा




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