1971 के उपरांत भारतीय विदेश नीति की बदलती अवधारणाएँ | 1971 Ke Uprant Bhartiya Videsh Neeti Ki Badalti Avdharnaein

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1971 Ke Uprant Bhartiya Videsh Neeti Ki Badalti Avdharnaein by गोपाल कृष्ण शर्मा - Gopal Krishna Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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¢ भारतीय विदेशनीति की बदलती अवधारणाएं कलकत्ता के अपने 1528 के अधिदेशन में भारतीव राष्ट्रीय कांग्रेस में विदेशनीति प्रकोष्ठ द्वय पस्तु प्रस्तावों को स्वीकार किया । इन प्रस्तावों में भिर सरिया! इराक एव फिलीस्तीन की जनदा को साम्राज्यवाद के विरुद्ध सर्ध्प में भारतीयों की ओर से शुमकामनाए प्रेषित की गई। इस तरह यूरोपीय सामाज्यवाद के विस्द् शिकार देशों की एकता का मार्ग विकसित होने लगा जिसका श्रेय भारतीय नेताओ को जाता है । 1930 के चाद दिश्व भे साग्राज्यवाद श्व उपनिदवेशाद के विशुद्ध फासीवाद व नाजीवाद की उग्र घारार विकसित हुई। भारतीय राष्ट्रीव काग्रेस इन धाराओं के प्रति सचेत धी, इसलिये कीग्रेस ने अपने प्रस्तावों में फासिस्ट एव नाजी शक्तियों की आकामर्क कार्यवादियों की निन्‍्दा की । प्रथन महायुद्ध के विपरीत काग्रेस ने द्वितीय महायुद के समय ब्रिटिश शासकों कौ युद्ध में किसी प्रकार का संददौग न देने का निर्णय लिया। 1939 के त्रिपुरा अधिवेशन में काग्रेस ने स्वय की ब्रिटिश नीति से अलग किया तया यह मते व्यत किया कि भारत के लिये यह परमावश्वक है फि वद अपनी विदेशनीति का संचालन एक स्वत राज्य के रप मँ करे ओर हसी कारण अपने को साधाज्यवाद का फासीवाद दोनो से ही अलग रखकर शति ओर स्वाधीनता के मार्ग का अनुसरण करे। अपने प्रस्ताव में कांग्रेस कार्य समिति ने कहां कि भारतीयों के लिये युद्ध और श्ाति के प्रश्नों का फैसना भारतीय जनता द्वारा किया जाना घादिए। उनकी पूरी सहानुभूति जनतत्र और स्वत्रता के पक्ष में दै किन्तु भारत जनदाग्रिक स्कतब्रता के प में देथ युद्ध मे माग नही ते सक्तं जवि स्वय उसे इस स्वतत्रता से वचित रखा गया हो।” इन घटनाओं तेक वग्रेस साधाज्यवाद, उपनिदेशवाद तथा किसी मी राष्ट्र की आकामक कार्यवाहियों की प्रखर विरोधी हो गई। 1945 मे समक्त राष्ट सघ की स्थापना का भारतीयों ने स्वागत किया वथ विश्वशाति की स्थापना के अपने उद्देश्यों के अनुदूल दने से ङस विश्व-सस्या कर सहयोगं देने का भी सकच्य किया किन्तु जुलाई, 1945 में काग्रेस कार्य समिति ने एक प्रस्ताव में इस नव-स्थापित विशव-सस्था पर मंदाशक्तियों के प्रभुव्व एव पराधीन उपनिवेशों की स्वप्ता फ विपये भै स्पष्ट धोपणा के स्थान पर अपनी आपति प्रकट की । 1945-46 में ही काग्रेस कार्य समिति ने अणुबम के प्रयोग से निर्मित स्थिति के प्रति सवेदना व्यक्त की । उपयुक्त सम्पूर्ग दिदरण से यह स्पष्ट होता है कि स्वत्घ्ता के पूर्व के ६2 व्पों में भारतीय राष्ट्रीय काग्रेस ने विदेशनीति के अपन चिन्तन एव दृष्टिकोण को क्रमिक रप से किया या। यह निश्चित रप से सही है कि विदेशनीति की इन आधारमूत मान्यताओं का निर्माण तत्कालीन विदिश दासा के कट अनुभवों तथा उससे मुक्ति के अहिंसात्मक प्रयासों के बीच ही हुआ था। (21 विदेशनीति के प्रभावी कारक




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