भारतीय अर्थ व्यवस्था की समस्याएँ | Bhartiya Arthvyavastha Ki Samasyaye
श्रेणी : अर्थशास्त्र / Economics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
618
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
आर० एस० शर्मा - R. S. Sharma
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एस० एल० दोषी - S. L. Doshi
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)12 “भारतीय अपनव्यवत्था
को बिना उपयुक्त सुगतान किये अधिक से श्रधिक माल का उत्पादन कराया जाय |
इस प्रकार कारीगरों की स्पिठि कम्पनी के दासो की तरह थी । इस नोतिं का इतती
कठोरता से पाछन किया गया कि बहुत से वारीगर अपना पैतृक व्यवसाय छोड कर
गावों में जाकर खेतों उरने लगे । इन् 1824 -35 ई० मे कोः क वगर यतत
ने सपनों एक स्योरे से चिता था, 7 वाति ॐ रनवे दी दयनौय स्मि
अन्य कोई हृप्टान पी भूषि मूती वस्तौ के बुनकररो दी हर्दिदपो
इस प्रकार धीरे-धीरे भारतीय व्यापार सया उत्पादन-व्यवस्था पर कम्पनी का
नियन्मष और अधिकार बदता गया ! परन्तु 18वी शताब्दी के अन्त तथा 19वीं
शनाद्दी के प्रारम्भ में जब इगरठंड की औद्योगिक शान्ति के परिणामस्वरूप वहा वस्त्र
उद्योग बड़े पंभाने पर स्थापित किया गया, तब से भारत को एक निर्यातक देश
(लग) चे स्यात प्र जाया देया (10000116) वताने वे प्रयटन् कथे जनि
खगे! इम दिखा मे सवते षठके मन् 18153 ई० परे चादर मधिनिपम के अन्तगेंत ईस्ट
इण्डिया कम्पनी का भारत से व्यापार परने का एकायिकार समाप्त कर दिया गया,
क्योकि थव इग्लेंड के उद्योगपति अपने उद्योगों का निर्तित माल भारत जेंसे उपनिवेश
में वेचकर ही विटिश औद्योगिक त्रान्ति को सफल बनाना चाहते थे । इसके लिए
दूमरा उपाय यह शिया गएा कि वहा कौ सरकार से स्थतन्त्र व्यापार की नीति अपना
कर उद्यीगपतियों को भारत को अधिक से अधिक निरिं माठ तियाति करने की छूट
है दी तथा दूसरी तरफ तटकर (टैरिफ) नीति द्वार अपने देर के उद्योगों को सरक्षण
प्रदान करने के लिए भारतीय निमित वस्तुओं के आपात दो कम कर् पिया । परिशाम-
स्वरुप सन् 1814 ई० से सन् 1835 ई० तन भारत में ब्रिटिश निर्मित मूनी स्तो बै
नायात में 20 युने गे बधिक बुद्धि हुई (एवं मिस्यियें गय हे बढ कर 51 मि गज हो
यदौ, भवक्ि भारतीय निमित मूली वस्तो नियति निरस्तर कम होता गया
(मन् 1814 ई०्मे [मि थान, मन् 1844 ई० ते 63.000 थान वथा सनै. 1850
ई० मे स्पूं ब्रिट्दि निर्यात का 1 माग) ॥
इस अवधि में सनू 1833 में एक चाटंर अधिनियम के द्वारा कम्पनी की
समर व्यापारिक क्रियायँ समाप्त कर दी गयो और इर्लैंड के पू जीपतियो को
भारत में अपनी पू जी विनिधोजित करने का अधिकार प्रदान क्या गया । इस
विशेषाधिगार के फतस्वरूप वहीं के प् जीपतियों ने यहा अपनी फैनटरियों रधापित
की तथा अन्य उपक्रमो में श्रवेठा करना प्रारम्भ कर दिया। विंदेशी पू'जी के प्रवेश
1, श कट् एय विवव २ करव्यात ४ य वण (वयल, गर णम
ए कैल काकस्य कण चत ० त 1०५
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