विकास का समाजशास्त्र | Vikas Ka Samajshastra

Book Image : विकास का समाजशास्त्र  - Vikas Ka Samajshastra

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about श्यामाचरण दुबे - Shyamacharan Dube

Add Infomation AboutShyamacharan Dube

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
दबावों के कारण धीमी गति से परिवर्तन होते रहते हैं। समुदायो ओर समाजो की पूर्ण समाप्ति तभी होती है जब उनका भौतिक अस्तित्व ही समाप्त हा जाए जैसा तस्मानिया के मून समाज मे हुआ । सामाजिक सास्कृतिकं परिसमाप्त तद हाती है जव लक्ष्य, मूल्य, साधन ओर सस्याएं पूरी तरह से बदल जाएं । ऐसी स्थिति मे भी आदि सस्कृति के कुछ तत्त्व लुके छिपे अवशिष्ट रहते हैं और विशेष परिस्थितियों मे अपने आपको अभिव्यक्त करते हैं | बदलते प्राकृतिक और सास्कृतिक पर्यादरण से अनुकूलन के लिए नवाचार आवश्यक होते हैं। ये व्यवहत विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र म हो सकते हैं, सामाजिक पुररचना अथवा प्रशासन ओर प्रबंधन के क्षेत्रो मे भी । सामाजिक सास्कृतिक विकास के आवश्यक तन्व होते है सात्कृतिक आधारभूमि की उपस्थिति, नवाचार, खोज ओर आदिष्कारा की एसी गति जिससे आज ओर आनेवाले कन की समस्याओ के समाधान पाए जा सके, ौर सामाजिक सास्कृतिक गत्यात्मकत्र, जो सामाजिकं सरचना जर सास्कृत्तिक मूल्य वियान कौ इन परिवर्तनो के अनुरूप दाल सेके । विकास अपनी स्वाभाविक गति से हो सकता है और नियोजित हस्तक्षेप द्वारा परिवर्तन की गति बढ़ा कर भी। विकाप्त और आधुनिकीकरण की कार्य सूची परिवर्तन की ऐतिहासिक धारा मे सार्थक हस्ततेप की धोतक होती है। परिवर्तन के कारण * परिवर्तन क्यो होता है ? इस प्रश्न पर अनेक दृष्टियो से विचार किया गया है। कुछ उत्तर जो पहले सन्तापजनक माने गए थे, अब पर्याप्त माने जाहे हैं। प्रजातिवादी सिद्धान्त के अनुसार परिवर्तन और प्रगति की दौड मं कुछ प्रजातियाँ आगे निकल जाती हैं और कुछ पिछड़ जाती हैं, यह उनकी असमाने जैविकीय शमताओ के कारण होता है | इस दृष्टिकोण की पृष्ठभूमि में जातीय अह और राजनीति ही होते हैं, कोई दैज्ञानिक आधार नहीं | भूगोलवादी सिद्धान्त के अनुसार पर्यावरण और जलदायु, परिवर्तन की दिशा और गति को महत्त्वपूर्ग ढग से प्रभादित करते हैं। यह एक सीमा तक सच है परन्तु यह भी सच है कि ऐसे भी उदाहरण हैं जहाँ प्रतिकूल परिस्थितियों मे परिवर्तन और विकास हुआ है और अनुकूल परिस्थितियों मे हास। मानव प्रकृति से बहुत कुछ ग्रहण अवश्य करता है, परन्तु अपनी क्षमताओं से वह उसे बदल भी सकता है। इतिहास और सामाजिक विज्ञानो के विकास के आरम्भिक दौर में महान्‌ पुरुष सिद्धान्त प्रशेपित किया गया था, जो अति सृजनशील श्षमताओवाले एक अत्यन्त उल्पसख्यक समूह के व्यक्तियों को विराट परिवर्तनो का श्रेय देता था । इतिहास पुरुषों का महत्त्व असन्दिग्ध है, परन्तु उन्हे टिए जानेवाले श्रेय का एक वडा पाग दूरौ कौ भी मिलना चाहिए 1 हर बडे आविष्कार या खोज की जडो मे पूर्वं अर्जित ज्ञान और विचार का एक बड़ा भण्डार होता है । कुछ सामाजिक पर्यावरण नवाचारौ को प्रेरित और पुरस्कृत करते हैं, कुछ उनकी स्वीकृति मे अवरोधक होते हैं। 18 विकास का समाजशास्त्र




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now