सरस्वती | Sarswati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१९६६ विशेषाधिकारों श्रौर बढ़ी हुई श्राथिक हिसियत के कारण संसद सदस्यों का एक नया वर्ग बन रहा है जो शासकों श्रौर प्रद्यासकों के वर्ग के समान जनता से श्रधिक्राधिक दूर होता चला-जा रहा है। इससे उत्पन्न सामाजिक विषमता देश के भविष्य के लिए श्रशुभ प्रमाणित होगी । , श्पॉलो-१० की आश्चर्थननक सफलता--चन्द्रमा पर मंतुष्य को उतारने की योजना की तंयारी में अपॉलो-१० की यात्रा सम्बन्धी झाइच्यंजनक सफलताओं से प्रेरित होकर १९६१ में श्रमरीका के तत्कालीन राष्ट्रपति कंनेडी ने घोषणा की थी कि १९७० के पहिले श्रमरीका भ्रपने किसी श्रंतरिक्ष यात्री को चन्द्रमा पर उतार देगा । उस समय श्रमरीका के वैज्ञानिकों को भी इसकी पूति में सन्देह था। किन्तु वे इस काभ में एकाग्र चित्त से लग गये श्रौर श्रपांलो- १० कौ उपलन्धि उनकी ्राशासे भी श्रधिक सफल रही । श्रारम्भ में वहाँके वैज्ञानिकों में इस वात पर मतभेद था कि चन्द्रमा पर्‌ मनुष्य को किस प्रकार उतारा जाय वैज्ञा- निकों के एक दल का मत था कि पूरे यान को सीधे चन्द्र-तल पर उतारा जाय, श्रौर दूसरा दल कहता था कि वह इतना -भारी (प्राय; ७ टन) है कि शंतरिक्ष में उसे छोड़ने के लिए एक करोड़ बीस लाख पाउण्ड की ठोकर देनेवाले प्रक्ष्य की श्रावश्यकता होगी । किन्तु जो सबसे शक्तिशाली प्रक्षेप्य उपलब्ध था वह्‌ था शनिं-५ जो ७५ लाख पाउण्ड की ठोकर देता है इस दूसरे मत के वैज्ञानिकों में प्रमुख थे डा ० हुवोत्ट । उनका कहना था कि श्रन्तरिक्ष यान चन्द्रमा के गुरुत्वाकषंण वृत्त में परिक्रमा करता रहे, श्रौर उसमें से एक छोटे यान ' (नॉड्यूल) में बैठकर एक-दो भ्र॑तरिक्ष यात्री चन्द्र-तल पर उतरें ।- इस छोटे यान में ऐसे इंजन लगे रहें जो चलाने पर उसे चन्द्रतल से इतना ऊचा उठा दे कि वह्‌ परिक्रमा करते ` हुए श्रन्त रिक्षयान के पास परहुच जाय, श्रौर वे उसमें से निकल- रक मुख्य श्रंतरिक्षयान में भ्रा जाये, श्रौर तव श्रपने इंजिन ` चलाकर मुख्यं यान चन्द्रमा के गुरुत्वाकषंण वृत्त से निकल “कर पृथ्वी पर लौट श्राने की यात्रा श्रारम्भ कर दे । भ्रन्त में डा० हूबोल्ट की योजना के श्रनुसार ही काम किंया गया । “ किन्तु इस “यात्रा के लिए जिन संयंत्रों, बेतार के संचार साधनों, बेतार से चित्र और चलचित्र भेजने श्रादि की जो “व्यवस्था की गयी थी उनकी जाँच श्रावदयक थी 1 यह्‌ भी ' झावद्यक था कि चस्द्-वल के बारे में झधिक जानकारी सम्धादंकौीय ४५३ 'प्रा्त की जाय, श्रौर चंद्रतल पर जहाँ ये श्रंतरिक्षयात्री उतारे जायें, वहाँकी,, रिथत्ति, धरती. की वनावट, ' उसकी नरमी-कठोरता श्रादि का पूरा ज्ञान प्राप्त कर लिया जाय | इसके लिश ` ्रपांलो' नामक;अरतरिक्षयान वनाया गया, श्रौर 'जाँच-पड़ताल के लिए १० 'भ्रपॉलो' यानों को चंद्रमा के निकट भेजा गया । प्रत्येक श्रपालो' कौ याना से कुं न कुछ महत्वपूणं नयी.बाते माश्रुम हई तथा उसमे लगे संयंत्रों कौ काथपरणाली की तुटियों श्रौर। विश्वसनीयता की पुष्टि की गयी 1 अर्पालो-१० प्रतिम परीक्षणयान था । इसका उद्देश्य चद्रमा के गुरुत्वाकर्षण वृत्त में पहुँचकर यह देखना था कि उससे जिस छोटे यान (मॉड्यूल) में बैठाकर मनुष्य चंद्रतल पर उतारे जायेंगे, वहू यान उत्तर कर झपने इंजिनों के बल से मुख्ययान तक लौट सकता है या नहों । जब श्रपॉलो-१० चन्द्रमा कौ गुरुत्वाकषंा परिधि में पहुंच गया तब वह चंद्रमा से.१३० किलोमीटर की दूरी पर उसकी परिक्रमा करने लगा, ओरौर उसने दो मनुष्यो को छोटे यान में वैठाकर चंद्रमा की झोर भेजा । यहू छोटा यान चंद्रतल पर उतर सकता था, किन्तु इसका यहु उदर्य नहीं था । इस वार तो केवल यह्‌ 'देखा जा रहा था कि वह ठीक काम करता है या नहीं । प्रतएव वह॒ चद्रतल से १५ किलोमीटर (साढ़े नौ मील) की ऊंचाई पर पहुंचकर रुक गया श्रौर चद्रमा की परिक्रमा करने लगा । सागरमाथा (माउण्ट एेवरेस्ट) समुद्रतल से प्रायः ५ मील ऊँचा है। यह छोटा यान चप्रतल से उस ऊँचाई की दुगनी से कुछ कम ऊँचाई तक पहुँच गया था। इतने निकट से किसी मनुष्य ने चंद्रमा के दर्शन नहीं किये थे । दूरवीनों की सहायता से उन दो शभ्रमरीकियों ने चन्द्र- तल का सूक्ष्म निरीक्षण किया 1 इसके वाद श्रपने छोटे यान के इंजिन को, चाल करके वे, पूवं योजना के भ्रनुसार, ऊपर उठे श्रौर मुख्य यान तक पहुँच गये । वे,छोटे यान, से निकल कर, श्रंतरिक्ष ही में, मुख्य यान में घुस गये, श्रौर पृथ्वी को वापस लौट भ्राये । इस प्रकार उन्होने यह्‌ सिद्ध कर दिखाया कि (१) मुख्ययान से निकलकर श्रौर छोटे यान में बैठकर चंद्रतल_तक पहुँचा ,जा सकता है, श्रौर (२) यह छोटा यान श्रपने इंजिन की शक्ति से परिचालित होकर चंद्रतल से ऊपर उठकर फिर मुख्य यान तक पहुँच सकता है । „ _ श्रपालो-१० की ' यात्रा असाधारण रूप से. सफल हुई । उसके सव जटिल से जटिल संयंत्र विल्कुल ठीक तरट्‌ 'से काम करते रहे । वैज्ञानिकों ने उसका जो कार्यक्रम बचाया




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