नवतत्त्व | Navtattv

Shri Navtatvon Ka Swarup by श्री देवीचन्द्र चुन्नीलाल मेहता - Shree Devichandra Chunnilal Mehta

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about श्री देवीचन्द्र चुन्नीलाल मेहता - Shree Devichandra Chunnilal Mehta

Add Infomation AboutShree Devichandra Chunnilal Mehta

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
© पण्यं की तीन अव्या हं उपदेय, ज्ञेय और देय | धम अवस्था में जबतक सजुष्यभव, जायक्षेत्र आदि पुण्य ग्रकृतियां माप नहीं हुई हैं तयतक के किए पुण्य उपादेय हैं क्यों कि इन मकुतियों के थिना चारिन की माि नहीं होती ६} चासििप्राप्रद्ये जानें के बाद अर्थात्‌ साघकावस्था में पण्य तेय हे अर्थात्‌ उप्त समय न तो. मनुष्यल्र आदि पुण्य ग्रूकृतियों को माप्त करने की इच्छा की जाती है और ने छोड़ने की, क्यों कि वे मोक्ष तझ पहुँचाने में सहायक द] चासि फी पुष्यता द्र जाने पर्‌ अर्थात्‌ चौददर्च गुगसथान की माप्ति दो जाने पर वे पुष्य अकृतियों देय दो जाती कयौ कि रीर को छोड़े विना मोशन की पादनि नहीं हो सकती है। सब कम परति का स्थाय दनि प्रदी मोक्ष की मापि होती दे । लसे समुद्र को पार करने के छिये समुद्र के किनारे खड व्यक्ति के छिये नॉका उपादिय दूं । नोका में बैठे हुए के लिये नोफा संस है । जर्थातू न देय भर ने उपादेय द | दूसरे किनारे पर पहुँच जाने के बाद नीका देय हैं, क्यों कि नोफा को छोड़े बिना दूसरे किनारे पर स्थित अनष्ट नगर की श्राप नदीं हो सकती है । इसी तरद संसाररूपी समृद्र से पार होगे के दिए पुण्यरूपी नौदा की आवश्यकता सिन्त चोदव गुणस्पान में पहुँच जाने के पथात्‌ मोक्षरूपी नगर वी माप के समय पुण्य दुय इो जाता है । नन्दन्‌ नध कयम सी किनि द बीरे जस्य फिलने




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now