सती मदन रेखा | Sati Madan Rekha

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Sati Madan Rekha by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२ फथधाररण ष्ट तो उसे सुनने फे ठिए, युगवाहु नित्य प्रात्त/तफाल मणिरथ की सेवा में उपस्थित हुआ करता था। उसने, अपन ठिए णसा नियम ही बना लियाया। इस नियम के अनुसार, युगयाए, . मणिरध के सामने उपस्थित हुआ श्रौर उसने मणिरय को प्रणाम . किया । मणिरथ ने, युगघाहु को नित्य से अधिक स्नेह पथ न्द्र अ कः षष्ठेन चनन, ~> 4 आनन्द पूर्वक आशीर्वाद दिया । पारस्परिक कुलल-प्रनन फे पत्धात , युगवाह ने मणिरथ से कहा, छि श्राज मे, ध्रापको नित्य से घटत अधिक भानन्दित देख रहा । क्या में यद जानने फे योग्य हूँ, कि श्राज ऐसा कौनसा हृप-समाचार है, जिसने आप ऐसे गम्भीर मद्दाराजा पर भी छत्यथिक प्रभाव डाटा है ? युगवाहु का कथन सुनफर, मणिरथ और भी श्रधिक प्रसन्न हुआ । उसने युगवाहु से कहा; कि क्‍या कोइ ऐसी घात भी षौ सकती है, जो में तुम से शुप्र रखूं ? मेंने, आज तक तुम से न तो कोई वात गुप्त रखी दी है, न भविप्य में गुप्त रखने की इच्छा दी है और जिस बात के छिये तुम पूछ रहे दो, वद्द वात तो विशेपतः तुम्ददी से सम्बन्धित हैं, इसलिए इत रुत रखने का कोड कारण ही नदींहै। प्रिय युगवाहु, मुझे आज श्रवक्य ही श्रत्यधिक प्रसन्नता है भोर प्रसन्नता का कारण है, तुम्दे युवराज बनाने का मेरा निश्चय । भति, तुमे पना युवराज धनाने का निश्चय किया हे । स महान्‌ श्युभ निणेय के कारण ट, सुमे प्रसन्नता है । मैंने




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