भारत के प्राचीन जैन तीर्थ | Bharat Ke Parachin Jain Tirth
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
210
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about जगदीशचन्द्र जैन - Jagadish Chandra Jain
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)महावीर की विद्दार-चयां
थी | दोनों के बीच में सुवणुंकूला और रूयकूला नामक नदियाँ बत्ती थीं ।
महावीर ने दक्षिण वाचाला से उत्तर वाचाला की द्रोर प्रस्थान किया | उत्तर
चाचाला जाति हुए वीच में कनकखल नाम का झ्राश्रम पडता व्रा । यहाँ से
मड़ावीर सेयविया नगरी पहुँचे, जहाँ प्रदेशी राजा से उनका द्ादर-सत्कार
फिया। तत्पश्चात् गगा नदी पारःकर महावीर सुरमिपुर पहुँचे श्रौर वां से
थूराक सनिवेश पहुँच कर ध्यान में श्रवस्थित हो गए | यहो से महावीर राज-
गह गए श्र उसके वाद नालन्दा के बाहर फिसी जुलादे सी शाला म ध्याना-
वस्थित हो गए । सयोगवश मखलिपुत्र गोशाल भी उस समय यहीं ठहर हुआ
था] महावीर के व्यक्तित्व से प्रभावित शकर वष्ट उनका शिष्य वरन गया |
यहाँ से चल कर दोनो कोल्लाग सनिवेश पहुंचे । महावीर ने यहाँ दूसस
चाहुमास विताया । ,
तीसरा ब्रं
तत्पश्चात् महावीर और गोशाल सुवन्नखलय पहुचे ¦ वों से ब्राह्मणु-
ग्राम गये । यहाँ नस श्र उपनन्द नामक दो माई रहते थे, और दोना ॐ
य्लग अलग मोइल्ले थे । युरु-शिष्य यहाँ से 'वलकर चपा पहुँचे । भगवान ने
यहाँ तीसरा चाठुमास व्यत्तीत किया |
चौथा वपं
तत्पश्चात् दोनों कालाय सनिवेश जाकर एक शूल्यगद में ठहरे । चहाँ
से फ्तकालय गये; दौर वहाँ से कछुमाराय सनिवेश जाफर चपरमणिज नामक
उदान में ध्यानावस्थित हो गये । यहाँ पार्धापत्य स्थविर मुनिचन्द्र ठहरे हुए
थें, जिनके विषय मँ ऊपर कष्टा जा चुका है | यहाँ से चलकर दोनो चोराग
सनिवेश पहुँचे, लेकिन यहाँ गुपचर समफकर दोनों पकड़ लिये गये । यहाँ से
दोनो ने प्रष्टचमा के लिए प्रस्थान क्रिया | महावीर ने यहाँ चौथा चौमासा
चिताया ।
न
पॉचवों वपं
पारणा के वराद महावीर श्रौर गोशाल यष्टा से कथगला के लिए रवाना
हुए | वहाँ से श्रावस्ति पहुँचे, फिर इलेदय गये । फिर दोना नङ्गलाभाम पहुंच
( £ )
User Reviews
No Reviews | Add Yours...