श्री महाबल मलया सुंदरीनों रास | Shri Mahabal Malaya Shundarino Ras

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Shri Mahabal Malaya Shundarino Ras by श्री कांतिविजय जी - Shri Kantivijay Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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५५२.) षटावीने, तुं खोवे कां निज ठास रे ॥ कडा सुणिया शाद्‌ शिरोमणी, ए करतां चमा काम २ ॥ मो ०॥ २०॥ फिट लाजे नदीं कां बातो, अण्डुंति एम गमार रे ॥जो दोस हाये राउल जनणी, तो ज वीर्ये ए चार रे ॥ मोण्॥ ११ ॥ अति काठो उत्तर इस दी च॑, शेवें करी कपट जिवार रे ॥ ते पंथिक निरास प णा थद्‌, कोप्यो अति जोर तिवार रे ॥मो० ॥ १९॥ कांड साच सीखामणए यं इवे, एम बोल्यो तेणीवार रे ॥ एक विया गोमी धं, ते धन्या घरने बार रे ॥ ॥ मो ०॥ २३ ॥ तव संघे संधे बंधित थया, न खिसे स्यांयी तिल मात रे ॥ बिहु चित्र लिखित परं थिर रद्या, मन मादे घण अठुलात रे ॥ मो०॥ १४ ॥ तेद्‌ ऊर्वी चचव्यो परदे रियो, ःखजाल बंधाण वेद्‌ रे॥ ष्टां चा ढाल सोहामणी, एम कांतिविजय कदी पढ़ रे ॥ सोण्॥ रेप ॥ | ॥ दोहा शोरवी ॥ ॥ तत त रोठ, बेह ऊना बारणे ॥ देवे दीधी वेठ, पेट पीस करी ॥ २॥ व्या लोक नेक, थ्न जिशा थिर देखीने \उेत रथि ठ ठक; एम बोले अचरिज नरया ॥ ९ ॥ सुणएतां खोक सुजाणए ॥




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