चित्रमय अनुकम्पा-विचार | Chitramay Anukampa-Vichar

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Chitramay Anukampa-Vichar by कृष्णानन्द त्रिपाठी - Krishnanand Tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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€ _ ~ ह द विजय -अनुखस्या-कचार $ ५ दाह करणा वर्गाल्य प्ररे, सङ्ख्य अनन्तं 1 जध-जय जिनक्श विद्ुधदर, सुखमय छुषमावन्त ॥ ११ अनन्त जिन हुआ केवली, सनपय्येव मतिमन्त ! अवधिधर छनि निमा, दरापूवं रुन खन्त ॥ २॥ आगमन बलिया ये कहू; सषे उगत सार। वचन ने ब्रद्ध तेहन, ते झछ्से संसार ॥ ३ ॥ अचुकम्पा आछी कही; जिन-आगप्त रे सांप । अज्ञानी सोवज कहे, खोदा चोज़ लगाव ॥ ४ ॥ हालां नदि, जालं इह, अलुकस्पा री. घात | पंचमकाल प्रसाव थो, हा ! हा ! जिखुदन तात ॥५॥ अघुकम्पा उखयवा, माड सा जाल | मुरख सचूला जथो ए स्या, सले अनन्तो काल ॥ ६ ॥ हुःखमि आरे पचते, ङुणुर्‌ च्छायो पन्थ!




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