श्रीमद्भगवद्गीता | Shrimadbhagvadgita
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
250
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भापाटीकासमेत 1 (७)
भगवत्परमेशाने भक्तिरव्यभिचारिणी ॥
जायते सततं तत्र यत्र गीतायिनंदनम् ॥ ३३॥
जहौ गीताके अथंका निरंतर विनोद होता ह तकँ भगवानमें अतिउत्तम
अखंडभक्ति उत्पच्च होती है । ३३ ॥
प्रारव्च सुजमानाअप गाताभ्यास सदारतः ॥
स सुक्तः स सुखा करकं कृमणा नपबध्यत ॥३९॥
जो स्वकाल गीताहीके अश्यासमं निरत हे वह भारब्यवशसे संसारी
गता हैं, तोभी वह मुक्त आर सुखी ₹, तथा कमसेभी वैधनेका वहीं हे ३४
छ, कि, ७०७७.
महापापादपापान माताऽध्यार्या कसात चत् ॥
न् कचत्स्पररत तस्य नाटनादलक्पसथसा॥ ३॥
जो नित्य गीताका श्रवण, पठन) मनन, करता हो ओर वह् दवयोगसे
भख बह्महत्यादिक महापापी करे तोगी जलकरके कमलपत्रवत्
क्क = अ ०५
~ चित्त नहा होता ह।॥ ३५ ॥
स्नातो वा यदि वाऽस्नातः शुचि यदि वाऽश्ुचिः॥
विभूतिं विश्वरूपश्च संस्मरन्सवंदा चिः ॥ २६॥
स्वनि कय हय अथवा चव कय हाय पावत हाय अथवा अपावत्र हाय
विभरूतियाग आर विश्वरूपद्धन अध्यायका पटताहूवा सदा पावत हता २६
अनाचारेद्धव पापमवाच्यादि कृतं च यत् ॥
~ अयश््यमक्षनं दोषमस्पशस्पशजं तथा ॥ ३७॥
ज्ञाताज्ञातकरतं नित्यमिद्वियेजंनितं च यत् ॥
तत्सवं नाशमायाति गीतापठिन तल्षणात् ॥३८॥
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