दो सौ बावन वैष्णव की वार्ता | Do Sau Baavan Vaishnavan ki Varta

Do Sau Baavan Vaishnavan ki Varta by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वैष्णव ($) गोविदस्वामी. ` (३) प ॥ तब वे न्हाय आये ॥ तब श्रीनवनीतप्रिया- जीके संनिधिमें नाम निवेदन करायो ॥ तब गोविदस्वा- मी साक्षात पृणैषरषोत्तम कोटिकंदपटावण्यके देन्‌ | | मये ॥ ओर सव रीलानको अडमव मयो ॥ श्रीयसांईजी श्रीनवनीतप्रियाजीकी सेवा करके बाहिर पधार ॥ तब गोविदस्वामीने बीनती करी ॥ जो आप्तौ कपटसूप दिखावतहो॥ साक्षात पणंषएरुपोत्तमरूप होयकेवेदोक्त कम करत हो॥सो हम असेनकु मोद होयहै॥ जव श्रीएसारजीनं आज्ञाकरी॥ जो मक्तिमागंहेसो एख्को इक्षहै॥ आर क| मैमागंहैसो कांटनकी बारहै॥तासूं कममागंकी वारविना मक्तिमाग जो फ़ूठको दक्ष वाकी रक्षा नहोय ॥ ये सुन- के गोविंदस्वामी बढ़त प्रसन्न भये ॥ गोविंददास ऐसें क- पापात्र भगवदीय मये॥ प्रसंग॥१॥सो गोविंददास महाव- | [नके टेकरापर रहते हते॥ और नये कीतैन करके गावते | हो ॥ प श्रीठाकरजी छनवेके पंघारते हते ॥ जब उद्दां मदनगोपाठदास कायथ कीर्तन लिखवेक आवते| 'हते ॥ सो एकदिन श्रीठाकुरजीकु गोविंदस्वामीनें कही ॥ त इहाताई आप नित्व श्रम्‌ करोह .॥ सो आपको गान




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