तिलिस्म फिरंग | Tilism Firang
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
31 MB
कुल पष्ठ :
522
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)तिलखिस्पफ़िर्ड्र। ७
किं उनके हानेका कारण क्पाह संरेहीकहतारे कि जतक् रेव
के माननेकेयोग्ध रीतोको खण्डन न करो तवतक तम आक्रषंग
विदयाके जीवाकप्णाविद्याकरे मटक टाोनेको कयोंर वर्णान कर
सक्ती आर जाक सदा इनसंरेहाका परा उत्तर संरेटीकोन
मिखता इसद्िये वह अरपनेवनमं ठनटरेताह क्रि इन सरोंक्रो
मानना नहींचाहिये रार पवाक्त मरख्खो ननेकेयोग्यही नहीं -ह॥
परन्त ध्यानकी जिये कि इस संशय के करने में यह वात
समझ आठवीह कि मानो हम ईश्वर की शक्ति को सम्पण रीति
जानते हैं और यह बात कि मानो जिस मनप्य को कोई बात
मारु महद उसे उनितदं कि उसके होनेका कारण वतारे नहीं
तो चहबात निश्चपके योग्यनहींह आपको यहवबात समझानी
फि यहप्रमागा यधाथ नहीं ह उयाह भरकर कि जवकिसीवात
का कारण माठम कियाजाता है तो पहले उसबातका बतं-
मान होना अवश्य मानना चाहिये तथाच ज्योत्तिष॑ विद्या की
बाते ऐसोधीं कि जिनकाकारण माऊम नहीं होताथा परन्त प्रा
चीन बद्धिमान आर गणकोंने उनबातॉंकी ठीक समझकर आर
वीकारयोग्ध जानकर उनकी उत्पत्ति का कारण माल मकिया
अरर उस २ पोतिपविद्या की सम्पणरीत मालम कीं जिससे उन
वातोंके होन॑केकारण माद महूये आर उनकीखोजङा यह परि.
खामहुआ कि ज्योतिषविद्याकी बहुतसीवात अतिशुद्तास मा-
ठुमहुई हैं और जो बातें आगे होनेवाली होती हैं उनके होनेका
समय वरावर आर शदताकसाथहानेसं पहर वतायाजासक्ता
ह किन्त वास्तवम् राजक्रा वताघानाताह एक घमनेवाङे सि-
तारे की गतिर्मे अन्तर पायाजताथा आर उसफे अन्तरका
कारण नहीं माउम होताथा परन्त् अन्उरकारीना मानकर जब
उसकाकारण टेदागया तोएकद्लोटा सितारा आर उसके निरुद
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