भारतकी खुराककी समस्या | Bharat Ki Khurak Ki Samasya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
68
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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तंगीके जमानेमें
[पिछली लड़ाऔके दौरानमें जब भारतमें खाद्य-पदार्थोकी तंगी
फंली हुआ थी, अुस समय गांधीजीने अपने देशवासियोंको निम्न-लिखित
सलाह दी थी । देशकी वर्तमान स्थितिको देखते हु आज भी असका .
महत्व हैः जिसे अभी भी जरूरतका लाखों टन खाद्यान्न आयात
करना पड़ रहा दहै।] ल्
..... कहावत है कि जो जितना बचाता है, वह अतना ही कमाता या
पदा करता है। जिसलिजे जिन्हें गरीबों पर दया है, जो अनके साथ
अंक्य साधना चाहते हैं, अुन्हें अपनी आवश्यकतायें कम करनी चाहिये ।
यह् हम कओ तरीकोंसे कर सकते हैं। मैं अनमें से कुछ ही का यहां
जिक्र करूंगा ।
- धनिक वर्गंमें प्रमाण या आवश्यकतासे कहीं ज्यादा खाना खाया
ओर जाया किया जाता है। अेक समयमें अेक ही अनाज जिस्तेमाल
करना चाहिये । चपाती, दाल-भात, दूध-घी, गड़ और तेल ये खाद्य-पदार्थ
शाक-तरकारी और फलके अपरांत आम तौर पर हमारे घरोंमें जिस्ते-
माल. किये जाते हैं। आरोग्यकी दृष्टिसे यह मेल ठीक. नहीं है।
जिन खोगोको दूध, पनीर, अंडे या मांसके रूपमें स्नायूवर्धंक तत्त्व मिल
जाते हूँ, अुन्हें दालकी बिलकुल जरूरत नहीं रहती ! गरीब लोगोंको
तो सिफं वनस्पति द्वारा ही स्नायुवर्धक तत्तव मिक सक्ते है । अगर
धनिक वगं दा और तेल लेना छोड़ दे, तो गरीबोंको जीवन-निर्वाहके
किअं ये आवद्यक पदाथं मिलने लगें । जिन बेंचारोंको न. तो प्राणियोंके
_ दारीरसे पंदा हुअ स्नायुवधंक तत्त्व मिलते हैं और न चिकनाओ ही।
अन्नको दलियाकी तरह मुलायम बनाकर. कभी नहीं खाना चाहिये ।
. अगर असको किसी रसीी या तरल चीजमें इबोये बगैर सूखा ही
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