वक्तृता | Vaktrata
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
27 MB
कुल पष्ठ :
57
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about गोविन्द नारायण मिश्र - Govind Narayana Mishra
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कदा १५
की ्दृततिश्र्थीव् रयोग होत ह दा हु ठै, से पधुत्ति-निष्िख
मानते इ । णम् धातु शौर ङ् घत्यय क अवयवथं से भौ
शुष्द की प्रदूत्ति कमी नहीं हुई थी, यद तो केवल व्युत्पत्ति
_ निमिस मात्र है । गो जाति घा गोत्वजातिविशिष्ट भै णो
शब्द क्रा प्रयोग होला दै, द शि उस काश में ही थो.शब्द का
संकेत स्वीकार करना पड़ता हे-स संकेत यमू चातु झार
डोखू प्रत्ययणत नहीं है, इससे थी {6 शाब्व् छद् दै । पर््तु
पासफ व रसोइया शब्द रढ़ नहीं; यौगिक ही है। क्योंकि
4
। पाचक इख वणे सुदाय ऋ 'ऊन्ली रथं विशेष मँ संकेत नदीं
है । केवल 'श्रवयव संकेत थीत प् चु श्र खुश प्रत्यय
के थे से टी पाकर्पर्ता छोथे की जानकारी होती है! सश्चदाय
के संकेत स्वीकार करने का फाई कारण नदीं दिखता | इस
लिष्य हौ (पाचकः श्य् को यौगिक मानते हैं। यथाये में याद
शष्ठ रु नदी है। न ध
ं गा डे छीर बम 5 गये
` उक्त संझेत थी दो प्रकार कृ है। छाधुलिक छोर सनातन ।
जो संकेत झनादि काल से जला शा रद है, चह सित्य छर
सनातन है ¶ परन्तु ओ सेत पैसा नहीं अर्थात् दीच भ
काल-विशेष में जिसकी मयूत्ति हुई है, उसे आधुनिक कते
हैं । नादि काल से धरघुक खनप्ठन संकेत का ही दूसरा नाम
शक्ति, दर छाधुनिक का. परिमावा है। सनातनी संकेत वा .
शक्ति झालुलार जो शब्द जिस छार्थ का बालक दै, अनादि
काल से उस शब्द का उस रे मेँ ग्ही प्रयोग भी चला था रहा
_ है। परन्तु झाघुनिक संकेत, वा परिभाषा से शब्द का जो थे
उत्पन्न होता है; उस श्यै भ उख शब्द का. डानादि काल से
अयोग न तों होता दी है औौर न कमी दो दी लष योम
किः
भ
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