वक्तृता | Vaktrata

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Vaktrat by गोविन्द नारायण मिश्र - Govind Narayana Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कदा १५ की ्दृततिश्र्थीव्‌ रयोग होत ह दा हु ठै, से पधुत्ति-निष्िख मानते इ । णम्‌ धातु शौर ङ्‌ घत्यय क अवयवथं से भौ शुष्द की प्रदूत्ति कमी नहीं हुई थी, यद तो केवल व्युत्पत्ति _ निमिस मात्र है । गो जाति घा गोत्वजातिविशिष्ट भै णो शब्द क्रा प्रयोग होला दै, द शि उस काश में ही थो.शब्द का संकेत स्वीकार करना पड़ता हे-स संकेत यमू चातु झार डोखू प्रत्ययणत नहीं है, इससे थी {6 शाब्व्‌ छद्‌ दै । पर््तु पासफ व रसोइया शब्द रढ़ नहीं; यौगिक ही है। क्योंकि 4 । पाचक इख वणे सुदाय ऋ 'ऊन्ली रथं विशेष मँ संकेत नदीं है । केवल 'श्रवयव संकेत थीत प्‌ चु श्र खुश प्रत्यय के थे से टी पाकर्पर्ता छोथे की जानकारी होती है! सश्चदाय के संकेत स्वीकार करने का फाई कारण नदीं दिखता | इस लिष्य हौ (पाचकः श्य्‌ को यौगिक मानते हैं। यथाये में याद शष्ठ रु नदी है। न ध ं गा डे छीर बम 5 गये ` उक्त संझेत थी दो प्रकार कृ है। छाधुलिक छोर सनातन । जो संकेत झनादि काल से जला शा रद है, चह सित्य छर सनातन है ¶ परन्तु ओ सेत पैसा नहीं अर्थात्‌ दीच भ काल-विशेष में जिसकी मयूत्ति हुई है, उसे आधुनिक कते हैं । नादि काल से धरघुक खनप्ठन संकेत का ही दूसरा नाम शक्ति, दर छाधुनिक का. परिमावा है। सनातनी संकेत वा . शक्ति झालुलार जो शब्द जिस छार्थ का बालक दै, अनादि काल से उस शब्द का उस रे मेँ ग्ही प्रयोग भी चला था रहा _ है। परन्तु झाघुनिक संकेत, वा परिभाषा से शब्द का जो थे उत्पन्न होता है; उस श्यै भ उख शब्द का. डानादि काल से अयोग न तों होता दी है औौर न कमी दो दी लष योम किः भ




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