डॉ॰ धर्मवीर भारती और हिन्दी पत्रकारिता | Dr. Dharmaveer Bharati Aur Hindi Patrakarita

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Dr. Dharmaveer Bharati Aur Hindi Patrakarita by देवेश कुमार - Devesh Kumar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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। र ~ मामा सकी । जिस व्यवस्था के विरुद्ध हम संघर्षरत थे हमें उसी व्यवस्था को तिनके की तरह ग्रहण करना पड़ा | जब राष्ट्रीय परिदृश्य इतना उथल-पुथल भरा था, तब भारती प्रेम की कोमल-कांत पदावली में आकंठ डूबे हुए थे । उनकी कालजयी कृति “गुनाहों का देवता सन्‌ 1949 में ही प्रकाशित हुई थी । सन्‌ 1950 में भारती प्रयाग | | विश्वविद्यालय में हिन्दी के प्राध्यापक हो गए । अभी वे पूरे 25 वर्ष के भी. नहीं हुए थे । यानी घोर युवावस्था में ही वे युवाओं के गुरु बन गए । “गुनाहों का देवता' उन दिनों कॉलेज में अध्ययनरत छात्र-छात्राओं का सबसे प्रिय ग्रंथ था । इसी कारण वे जल्दी ही प्रयाग विश्वविद्यालय के सबसे लोकप्रिय | | प्राध्यापक बन गए । देश उन दिनो अपने संक्रमणकाल मे था । हर प्रबुद्ध नागरिक यह अनुभव [ध | कर रहा था कि उसे देश के नवनिमणि मे अपना योगदान देना चाहिये । इसी ` | अनुभूति ने भारती को भी इलाहाबाद की विश्वविद्यालयेत्तर गतिविधियों मे | (४ सक्रिय भूमिका निभाने के लिए प्रेरित किया । परिमल जैसी साहित्यिक संस्था के है गठन का विचार इसी प्रेरणा से उत्पन्न हुआ । उन दिनों 'परिमल' को 1 का इलाहाबाद की धड़कन माना जाता था | सामाजिक सरोकारों से जीवन्त जुड़ाव |... £ | रखने वाले उनके लेखन का सिलसिला निरन्तर जारी रहा । अध्यापन सेज्यादा | | | आनन्द उन्हे पत्रकारिता मेः आने लगा था । इसी की परिणिति ने उन्हें धर्मयुग ` | पे 4 | तक पहुंचाया ॥




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