डॉ॰ हरिवंशराय बच्चन के काव्य में प्रतीक एवं बिम्ब विधान का आलोचनात्मक अध्ययन | Dr. Harivansharay Bacchan Ke Kavaya Men Pratik Evm Bimb Vidhan Ka Aalochanatmak Adhyayan

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Dr. Harivansharay Bacchan Ke Kavaya Men Pratik Evm Bimb Vidhan Ka Aalochanatmak Adhyayan by सुधा दीक्षित - Sudha Dixit

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(7) _ के फलस्वरूप अनेक मानस छवियां आकारधारण करने लगती हैं, आलोचना की शब्दावली में इन्हें ही काव्य बिम्ब कहते हैं। इस प्रकार नई समीक्षा मेँ काव्य के अन्य तत्वों की अपेक्षा विम्ब को अधिक महत्व दिया शप जाने लगा। वर्तमान में इसका अत्यन्त प्रयोग है। । विम्ब | चेतन स्मृतियां हैं जो विचारों की मौलिक उत्तेजना के अभाव में उस विचार को सम्पूर्ण रूप में या आंशिक रूप में प्रस्तुत करती है। पाश्चात्य दृष्टि से बिम्ब की परिभाषा : अग्रेजी का (11206) ओर हिन्दी का विम्ब दोनों एक है। “विम्ब 60 का हिन्दी रूपान्तर है। जिसका अर्थ है- किसी पदार्थ को मूर्त्तता प्रदान करना, चित्रबद्ध करना, प्रतिबिम्बित करना या मानसी प्रतिकृति निर्मित करना। अंग्रेजी के तृतीय अन्तर्राष्ट्रीय शब्दकोष में '॥190 6 ' के अर्थ दिये गये हैं- प्रभावपूर्ण पद्धति से भाषा में वर्णन करना अथवा मूर्तित करना, किसी व्यक्ति अथवा वस्तु का पुररूत्पादन करना, दर्पण, चित्रक मूर्तिं आदि। व्रिरानिका विश्वकार्य में बिम्ब की परिभाषा निम्न प्रकार दी हुई है- [76 ५५० 11206 ४४॥ 96 &11010#/86 10 06106 बा ग 16121 लल्ञ्नीका0) = 11611161 01610118| 01 5660101078| ॐ का 0615011 01 11117 {68| 01 11168| ५५16 15 1560 885 8 01161 वत त (€1010 561\/1069.4 ू डा० नगेन काव्य बिम्ब, पृष्ठ 61 ८ 51101161 रर010 ८101150 01611081 ? 9588 1710 ॥५०५५ [नागा 0121-0िल०181# रि 1121 > ¢ ! ~| ` &16#५00न्५†8 8111108 रि 12 0906 7101 =




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