सप्तम दशकोत्तर हिन्दी महाकाव्यों का काव्यशास्त्रीय अध्ययन | Saptam Dashakottar Hindi Mahakavayon Ka Kavayashastriya Adhyayan

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Saptam Dashakottar Hindi Mahakavayon Ka Kavayashastriya Adhyayan by हीरालाल -Heeralal

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about हीरालाल जैन - Heeralal Jain

Add Infomation AboutHeeralal Jain

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
कल जी श्रेष्ठ प्रबन्धकान्य को ही महाकाव्य स्वीकार करते हैं। यसी उल्थावतली' की भूमिका मे पदमावत' को प्रबश्क्य की भि म्नोश्चित ्याहै। इन्हेनि लिहा ड ककि प्रबन्धकाब्य मानव जीवन का पर्ण दुश्य होता है। उसमें घटनाओं की सम्बद्ध श्रृंखला के और स्वनभाविक क्रम के ठीकठीक निर्वाह के साथ इदय को स्पशं करने वलि नाना भवो का रसात्मक अनभव कराने वाले प्रसंभॉ का समावेश होना चाहिरु। इतिवृत्त मात्र के निर्वाँह से रसानमव नहीं कराया जा सकता। उसके लिए घटनान _ चक़ के अन्तर्गत रेसी वस्तुओं और ब्यापारों का प्रतिबिम्बवत चित्रण होना चर जो श्रोता के हृदय में रसात्मक तर उठाने मैं समय हे छण्डकन्यि ओर प्रबन्धकध्य दीनो का एरवन्धकल्य भे स्थान $) दौनी भ = कंथात्मक अन्वित्ति रुव सम्बध का निर्वाह जावश्यक ड पिर ये रकं निष््वित विभेदक रेखा ` कै दवारा सुस्पष्ट ह बण्डकान्य में खण्ड जीवन की झलक प्रातलकित होती है और महा काव्य भ अण्ड जीवन चित्र को इन्होंने मासव जीवन के पूर्ण दार्य की सा से अभिधित . किया है। शुक्ल जी के अनुसार कदानक का सहज गति से विस्तार होना चाहिरू और अपनी रमर्ण . चाहिर। इसी से आधार्य जी ने रसात्मकता' को विहिष्ट स्डान देते हरू उसे प्रक्‍्ध की भात्मा स्वीकार किया है। ये महाकाव्य के तीन अनिवार्य तथ्य मानते हैं >> (1) मानव जीवन का अण्ड चित्रणं हो। (2) कथान्वि त कै साथ सहज मल्यात्मक गण डौ। (उ)ृवयदकोस्ष्षाकरने में समय रस व्यजना हो। जाः मसी न्थ अवार्य रामचन्द्र श्क्रतः पु 69 2= वही, पृ 70 यता के कारणं दूदय को स करने वाली शिति अनिवार्यं रूप से निषत्त होना




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now