श्री भगवती प्रसाद वाजपेयी के उपन्यासों में वस्तु और शिल्प | Shri Bhagawati Prasad Bajapeyi Ke Upanyaso Men Vastu Aur Shilp

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१९५० में प्रकाशित 'गुप्तधन' १९५७ में 'एकदा' शीर्षक से और १९५ २ सें अकाशित धरती की साँस' का अकाशन नदी और नाँव शीर्षक से १९६६ में प्रकाशित हुआ 1 समस्त उपन्यासो की तालिका इस प्रकार है + १०. ९९. ९२९. ९१३. १९९६ २९२८ २९२८ ९९९९ १९२४ १९२४ १९२६. १९२७ ९१९४० ९९५० १९५० २९५१ ६४९५ प्रेमपथ मीठी चुटकी अनाथ पत्नी मुस्कान प्रेम निर्वाह लालिमा पतिता की साधना पिपासा दो बहिनें निमंत्रण गुप्तधन चलते- चलते पत्तर सिद्धान्तो को अभिव्यक्त “भगवती प्रसाद जी ने यह बहुत ही अच्छी वस्तु भेट की है । इसमें वासना ओर कर्तव्य का अनतर्रन्र देखकर आप चकित रह जाएंगे । भूमिका - उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचन्द्र अकेली नारी के सामाजिक जीवन की कहानी इस उपन्यास के तीन लेखक है - भगवती प्रसाद वाजपेयी विजय वर्मा और शम्भु दयाल सक्सेना भूमिका लेखक उपन्यासकार विश्वम्भर नाथ शर्मा कौशिक है । ब्राह्मण समाज की कुरीतियां प्रमुख विषय है । | १९३२ मेँ यही कृति ^त्यागमयी' के नाम से प्रकाशित हुई है । इसमें युवक - युवती के सहज आकर्षण की कथा है । | १९५५ में यही उपन्यास “निर्यातन' शीर्षक से छपा हे । इसमे आकर्षण, ` प्रम ओर नैतिकता की त्रिकोणीय भाव भूमि है । उपन्यास के साथ श्रीयुत प्रफुल्ल चन्द्र ओझा जी के नाम संलग्न होने से इसकी प्रभविष्णुता बढ़ गई है । कथा मेँ निस्वार्थ प्रम की परिणति आत्म वलिदान से हुई है। ` सामाजिक समस्या की गाथा का मील का पत्थर है । प्रेममथ की भांति प्रेम ओर कर्तव्य के अर्दन का चित्रण करती हई यह एक भावनात्मक कृति है । इस उपन्यास का नाट्य रुपान्तर आकाशवाणी से प्रसारित हो चुका है । उपन्यास में त्रिकोणी प्रेम प्रसंग का संघर्ष अंग्रेजी उपन्यासकार हाईडी की भांति प्रस्तुत है । हिन्दी उपन्यास साहित्य में नैतिक मूल्यों का सृजन कारक उपन्यास है । इसे यू०पी० बोर्ड की इण्टर परीक्षा के लिए पाठ्यक्रम १९५२ में निर्धारित किया गया था 1१९५६ में यह “एकदा' शीर्षक से पुन: प्रकाशित किया गया है । प्रम प्रसंग की आत्मपरक शैली मे लिखा गया अन्यतम उपन्यास है । १९६४ में 'राजपथ' शीर्षक से यह पुनः प्रकाशित है । कानपुर विश्वविद्या ` ~ लय ने इसे बी० ए० के पाठ्यक्रम मेँ निर्धारित किया था । गांधी वादी ` विचारों को प्रस्तुत करने वाली यह कृति सत्य, अहिंसा न्याय के मानवीय क्त करती है । न क ह ४




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