श्रद्धा कण | Shraddha Kan

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Shraddha Kan by वियोगी हरि - Viyogi Hari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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: ११: कैसा जागरूक था वह ! अहिसा की ज्योति को उसने एक क्षणभी क्षीण तो नही होने दिया 1 सत्य के दीये में हरदम वह रोम-रोम से स्नेह उंडेकुता रहा; मौर हर सासि को राम-नाम की खौ से जोडता रहा भर तन के तार-तार से उसने प्रेम का सुर निकाला । हाँ, काल ने एक पलभी उसे अचेत नही पाया 1 १५




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