मानस व्याकरण | Manas-vyakaran

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वण-वियार श्प्प् मिलते हैं; वहाँ अन्य काण्डोंमें इनके अतिरिक्त क्रमशः: कियो या करथों; गयो; भयो; खायों आदि रूप भी मिलते हैं । कहना न होगा कि पहले प्रकारके रूप अवधी भाषाके हैं और दूसरे वर्गके रूप त्रजभाषाके | भ् उन्तमें इस सम्बन्ध यह निवेदन करना हैं कि मानसका संक्षिप्त व्याकरण लिखनेका यह प्रयास सबधा अनधिकार चेष्टा होनेपर भी इस दृष्टिसे किया गया हैं कि जिसमें विद्वानोंका ध्यान इस ओर आकर्षित हो ओर जिन्होंने इस दिदामें आजीवन परिश्रम किया हैं; वे छोंग मानसका एक सर्वाज्सुन्दर व्याकरण तैयार करके जनताके सामने रक्‍्खें--जिससे मानसकी भाषा तथा भावोंको समझनेमें सदाके लिये सुविधा हो जाय और इस अनुपम ग्रन्थरत्नका अधिकाधिक प्रच्वार होनेमैं सहायता मिले । इस प्रकारका प्रयास किसी विद्वानने किया भी हो तो उसका हमें पता नहीं हैं । हमारा तो यह प्रयास सर्वथा अपूर्ण तथा भूठमरा है । इसमें यदि कुछ सारकी बात मिले तो सारग्राही सजन उसे बालचेष्टा समझकर अपनावें; अन्यथा निः्सार समझकर उसकी उपेक्षा करें । विज्ञ महानुमावोंसे हमारी यह मी प्रार्थना है कि जहाँ कहीं हमारी भूल समझमसें आवे; वहाँ हमें निःसड्ोच बतलानेकी कृपा करें--जिससे उसे सुघारनेकी चेष्टा की जाय ) चण-विचार (07८०४१०७४३) संस्कृत-वर्णमालामें ५ मूल स्वर ( अ; इ» उः ऋ और ला ४ उनके दीघरूप ( पल” का दीघरूप नहीं होता )» ४ संयुक्त स्वर (एड ऐ; ओ औ--जो क्रमश अनइ: अकए: अनउ और अ+ओ से बने हुए हैं »» २ अयोगवाह वर्ण ( अनुस्वार और विसर्ग; जो सदा किसी दूसरे वर्णके साथ जुड़े रहते हैं ) तथा ३३ व्यज्नन--इस प्रकार कुछ ४८ वर्ण हैं । स्वरोंके केवल मूलरूप छेनेसे और दीर्घ स्वरॉको हस्व स्वरोंका ही रूपान्तर मान लेनेसे ४४ और संयुक्त स्वरोंको भी उनके अन्तर्गत मान लेनेसे केवठ ४० वर्ण रह जाते हैं । इनमेंसे रामचरितमानसमें मूल स्वरॉंमेंसे




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